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नीति वाक्यामृतम्
अमात्य-आदि प्रकृति स्वरूप :स्वामिमूलाः सर्वाः प्रकृतयोऽभिप्रेतार्थ योजनाय भवन्ति नास्वामिकाः ॥4॥
उच्छिन्नमूलेषु तरुषु किं कुर्थात् पुरुषं प्रसन्नः ।।5।। अन्वयार्थ :- (सर्वाः) सभी (प्रकृतयः) मंत्री, पुरोहितादि (अभिप्रेतार्थ) अभीष्ट-प्रयोजन सिद्धि (योजनाय) उपाय (स्वामिमूला:) राजा के आश्रय से (भवन्ति) होते हैं, (अस्वामिकाः) राजाओं के बिना (न) नहीं होते । ॥ गर्ग विद्वान ने भी कहा है :
स्थाममा विद्यमानेन 'स्वाधिकारानवाप्नुयात् ।
सर्वाः प्रकृतयो नैव बिना तेन समाप्नुयुः ।।1॥ अर्थ :- समस्त प्रकृति-आमात्य, पुरोहितादि राजा के रहने पर ही अपने अधिकार प्राप्त करने में समर्थ होते हैं अन्यथा नहीं 14॥
(उच्छिन्नमूलेषु) जड़ से नष्ट वृक्ष में (तरुषु) वृक्ष में (किम्) क्या (पुरुषप्रयत्नः) मनुष्य का पुरुषार्थ (कुर्यात्) कर सकता है ? 15॥
हरे भरे वृक्ष को आमूल छिन्न (काटने) करने पर पुरुष प्रयोग से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, उसी प्रकार राज के अभाव में मन्त्री, पुरोहितादि के प्रयजनों की सिद्धि नहीं हो सकती है 15॥ भागुरि विद्वान ने भी कहा
छिन्न मूलेषु वृक्षेषु यथा नो पल्लवादिकम् ।
तथा स्वामि विहीनानां प्रकृतीनां न वाञ्छितम् ।।1॥ अर्थ :- जिस प्रकार मूल रहित वृक्ष के फल-फूलों का आधार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार राजा के अभाव में समस्त कर्मचारियों का आश्रय नष्ट हो जाता है ।। । असत्य व धोखा देने से हानि :
असत्यवादिनो नश्यन्ति सर्वे गुणाः ।।6। वञ्चकेषु न परिजनो नापि चिरायुः ।।7।।
अन्वयार्थ :- (असत्यवादिनः) झूठ बोलने वालों के (सर्वे:) समस्त (गुणाः) गुण (नश्यन्ति) नष्ट हो जाते हैं ।6। (वञ्चकेषु) ठगों में-धोखेबाज के पास (परिजनाः) सेवकादि (न) नहीं रहते (अपि) और भी (चिरायुः) अधिककाल जीवन भी (न) नहीं रहता ।।
विशेषार्थ :- असत्यभाषण करने वाले मनुष्य के सभी गुण (ज्ञान-सदाचार आदि) नष्ट हो जाते हैं । "रैम्य' विद्वान ने भी कहा है :
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