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नीति वाक्यामृतम्
से (विनेशतु) नष्ट किये गये (इति श्रूयते) ऐसा सुना जाता है ।
वातापि और इल्वल नाम के दोनों राजाओं ने अपनी प्रजाओं को निरपराध कष्ट दिया-सताया था । फलतः अगस्त्य नाम के सन्यासी द्वारा मारे गये 1124॥
(यथादोषम्) अपराध के अनुसार (कोटि:) करोड़ (अपि) भी (गृहीता) ग्रहण किये जाने वाला (न) नहीं (दुःखायते) दुःखी नहीं होता (अन्यायेन) बिना अपराध, अन्याय से (पुन:) फिर (तृणशलाका) तिनके बराबर (अपि) भी (गृहीता) लेने पर (प्रजाः) प्रजा (खेदयति) दुःखी होती है ।।25 ।।
यदि राजा अपराध के अनुसार-न्यायोचित ढंग से करोड़ रुपये भी यदि ले ले तो भी प्रजा कष्टानुभव नहीं करती। किन्तु यदि अन्याय से निरपराध से एक तिनके के बराबर भी धनराशि दण्ड करे तो प्रजा खेदखिन्न होती ही है 125 ॥ भागुरि ने भी कहा है :
गृहीता नैव दुःखाय कोटिरप्यपराधिनः ।
अन्यायेन गृहीतं यद्भभुजा तृणमतिदम् ॥1॥ (तरुच्छेदेन) जड़काटकर (फलोपभोगः) फलभक्षण (सकृत्) एक बार (एव) ही है । अर्थात् जिस प्रकार वृक्ष को मूल से काटकर फलभक्षण करने वाला, मात्र एक बार ही फलोपभोग कर सकता है, उसी प्रकार अन्याय से प्रजा का धन हड़पी नृप भी एक बार धन पा सकता है सर्वदा नहीं ।। भविष्य में कुछ नहीं पाता 126 ॥ कहा
मूलच्छे दे यथा नास्ति तत्फलस्य पुनस्तरोः ।
सर्वस्वहरणे तद्वन्न नृपस्य तदुद्भवः ।।1।। (हि) निश्चय से (प्रजाविभव:) प्रजा की विभूति (स्वामिनः) राजा का (अद्वितीयः) विशिष्ट (भाण्डागार:) खजाना है (अतः) इसलिए (तम्) उसका (युक्तितः) न्याय से (उपभुजीत) भोग करे 127 ।। प्रजा की सम्पदा राजा के लिए अपूर्व खजाना है । अत: उसका सदुपयोग न्यायपूर्वक करना चाहिए । अर्थात् अपराधानुसार ही दण्ड में धनराशि लेना चाहिए । आर्थिक दण्ड आवश्यकता से अधिक नहीं लेना चाहिए ॥27॥ गौतम का अभिप्राय :
प्रजानां विभवो यश्च सोऽपरः कोश एव हि ।
नृपाणां युक्तितो ग्राह्यः सोऽन्यायेन न कर्हिचित् ।।1॥ (राजपरिगृहीतम्) राजकीय गृहीत (तृणम्) तिनका (अपि) भी (काञ्चनी) सोना (भवति) होता है (पूर्वसचितस्य) पहले संग्रह किया (अपि) भी (अर्थस्य) धन का (अपहराय) अपहरण होता है ।28 ॥
राजकीय साधारण वस्तु भी-तृण भी चुराये तो उसके बदले में सुवर्णमुद्रा देनी पड़ती है । क्योंकि राजदण्ड के कारण राजकीय सामान्य वस्तु भी पूर्व संचित धन को नष्ट कर देती है । कुद्ध राजा धनापहर है। अतः राज चोरी टैक्स आदि की चोरी कभी नहीं करना चाहिए 28॥ ब्लैक मार्केटिंग आदि से सदैव सावधान रहना चाहिए ।। धन व्यामोह नहीं करना चाहिए ।। कहा भी है:
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