________________
नीति वाक्यामृतम्
व्यसन सहजव्यसन कहे जाते हैं । कुसंगति से उत्पन्न दुर्व्यसन आहार्य कहलाते हैं । मनुष्य को स्वाभाविक व्यसन, धर्म व स्वर्गादि के साधन कल्याण कारक पदार्थों-विशुद्ध भावों के चिन्तवन, पापों के उत्पादक महादोषों का कथनश्रवण, तथा उन दोषों के निरुपक चरित्र-रावण, दुर्योधनादि अशिष्ट पुरुषों के भयंकर चरित्र श्रवण द्वारा एवं शिष्ट । पुरुषों की सगति से नष्ट करना चाहिए 13 | गुरु ने कहा है :
धर्मेणाभ्युदयो यस्य प्रत्यवायस्त्वधर्मतः ।
तं श्रुत्वा सहजं याति व्यसनं योगिसंगतः ॥॥ अर्थ :- धर्म से सुखी व पाप से दुःखी होने वाले शिष्ट व दुष्ट पुरुषों के चरित्र श्रवण व महापुरुषों के सत्सङ्ग से स्वाभाविक व्यसन नष्ट होते हैं In |3||
जो सत्पुरुष व्यसनी व्यक्ति के हृदय-प्रिय बनकर, उन्हें विश्वस्त कर अनेक प्रकार के नैतिक उपायों से उसके उन अभिलषित-इच्छित व्यसनों से विरक्त करते हैं उनसे छुड़ा देवे हैं वे महापुरुष "योगपुरुष" कहलाते हैं । हारीत विद्वान ने भी शिष्ट पुरुषों का इसी प्रकार लक्षण कहा है :
परचित्तानुकूल्येन विरक्तिं व्यसनात्मके ।
जनयन्तीष्टनाशेन ते ज्ञेया योगिनो नराः ॥11॥ अर्थ :- बुद्धिमान पुरुषों को व्यसनों से दूर सत्पुस, के. उत्तम चरित्रों के और तुम व्यसामानों के कुत्सित चरित्रों के क्रूर निंद्य परिणामों को ज्ञात कर व्यसनों का परित्याग कर देना चाहिए । आदर्श चरित्रों के पठन-पाठन, श्रवणादि द्वारा कुसंगजन्य व्यसनों का त्याग करना चाहिए।5। शुक्र विद्वान ने भी इसी प्रकार कहा
आहार्य व्यसनं नश्येत् सत्सङ्गेनाहितासितम् ।
महापुरुष वृत्तान्तैः श्रुतेश्चैव पुरातनैः ॥1॥ सं.प. अर्थ :- सत्सङ्गति द्वारा कुसंगति से प्राप्त परस्त्री सेवनादि व्यसनों का त्याग करना चाहिए । महापुरुषों के चरित्र, पुण्य-पुरातन पुरुषों के कथानकों के श्रवण, पठन-पाठनादि द्वारा आहार्य व्यसनों का परिहार करना चाहिए ।। सर्व का सारांश यही है 15।। अब 18 प्रकार के व्यसन बताते हैं :
स्त्रियमतिशयेन भजमानो भवत्यवश्यं तृतीया प्रकृतिः ॥16॥ सौम्यधातुक्षयेण सर्वधातुक्षयः 171 पानशौण्डश्चित्त विभ्रमान् मातरमपि गच्छति ॥8॥ मृगयासक्तिः स्तेन व्याल द्विषबायादानामामिषं पुरुष करोति 119॥ छूता सक्तस्य किमप्यकृत्यं नास्ति ।Mou मातर्यपि हि मृतायां दिव्यत्येव हि कितवः ॥11॥ पिशुनः सर्वेषामविश्वासं जनयति ॥12॥ दिवास्वाप: गुप्त व्याधि व्यालानामुत्थापनदण्डः सकल कार्यान्तरायश्च ॥13॥ न पर परीवादात् परं सर्व विद्वेषणभेषजमस्ति ।14॥ तौर्यत्रयासक्तिः प्राणार्थमानैर्वियोजयति In5॥थाट्या नाविधाय कमप्यनर्थ विरमति ।16 ॥अतीवेालुं स्त्रियोनन्ति, त्यजन्ति ।
342