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मीति वाक्यामृतम्
व्यसन-समुद्देश
व्यसन लक्षण, भेद, निवृत्ति, शिष्ट लक्षण व कृत्रिम व्यसन निवृत्ति :
व्यस्यति पुरुष श्रेयसः इति व्यसनम् ॥ व्यसनं द्विविधं सहजमाहार्य च ॥2॥ सहजं व्यसनं धर्माभ्युदयहेतुभिरधर्म जनित महा प्रत्यवाय प्रतिपादनरुपा रव्यानर्योग पुरुषैश्च प्रशमं नयेत् ।। ॥पर चित्तानुकूल्येन तदभिलषितेषूपायेन विरक्ति जनन हेतवो योगपुरुषाः । ॥ शिष्टजन संसर्ग दुर्जनाऽसंसर्गाभ्यां पुरातनमहापुरुष चरितोस्थिताभिः कथाभिराहार्य व्यसनं प्रतिबध्नीयात् ॥७॥
अन्वयार्थ :- (पुरुषम्) मनुष्य को (श्रेयस:) कल्याण से (व्यस्यति) गिराते हैं (इति) वे (व्यसनम्) व्यसन [अस्ति] है। [सन्ति] हैं । ॥ (व्यसनम्) व्यसन (द्विविधम्) दो प्रकार हैं (सहजः) स्वाभाविक (च) और (आहार्यम्) आहार्य 12 ।। (सहजम्) स्वाभाविक (व्यसनम्) व्यसन को (धर्म-अभ्युदय-हेतुभिः) धर्म बढ़ाने वाले कारणों से (अधर्मजनित) अधर्म-पाप से उत्पन्न (महाप्रत्यवाय) महान दोषों के (प्रतिपादनैः) कहने से (उपाख्यानैः) कथानकों द्वारा (च) और (योगपुरुषैः) योग्यपुरुषों द्वारा (प्रशमम्) शान्त (नयेत्) करे ।७॥ (परिचितानुकूल्येन) ज्ञात व्यसनासक्त मन के अनुकूल (तद्) उस (अभिलषितेषु) इच्छित पदार्थों में (उपायेन) उपायों से (विरक्ति जनन) विरक्त कराने के (हेतवः) कारणभूत व्यक्ति (योगपुरुषः) शिष्टजन [सन्ति] हैं । (शिष्टजनसंसर्ग) सत्पुरुष समागम (दुर्जनसंसर्गाभ्याम्) दुष्टजन से दूर रहने के (पुरातन) प्राचीन (महापुरुष) उत्तम पुरुषों के (चरितोत्थिताभिः) चारित्र से उत्पन्न (कथाभिः) कथाओं से (आहार्य) कृत्रिम (व्यसनम्) व्यसन को (बध्नीयात्) नष्ट करे ||
विशेषार्थ :- जो दुष्कर्म-बूत, मद्यपानादि मनुष्य को कल्याण पथ से भ्रष्ट करते हैं, पतन कराते हैं उन्हें व्यसन कहते हैं । ॥ शुक्र विद्वान ने कहा है :
उत्तमादधर्म स्थानं यदा गच्छतिमानवः । तदा तद्व्यसनं ज्ञेयं बुधैस्तस्य निरन्तरम् ।।
अर्थ :- मानव जिस असत्प्रवृत्ति से निरन्तर अपने श्रेष्ठतमपद से नीचपद को प्राप्त होता है उसे विद्वजन "व्यसन" कहते हैं । ॥ व्यसन दो प्रकार के है । 1. व्यसन-सहज और 2. आहार्य । जन्म से ही दुःखोत्पादक
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