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________________ नीति वाक्यामृतम् N फिर दूसरे के द्वारा निर्दिष्ट पदार्थों में क्यों न होगा ? अवश्य ही होगा । गुरु विद्वान ने भी उक्त बात की पुष्टि की है: मोहो वा संशयो वाथ दुष्ट श्रुत विपर्ययः । यतः संजायते तस्मात् तामेकां न विभावयेत् ॥ अर्थ :- स्वयं देखी व सुनी हुई वस्तु में भी मोह-अज्ञान, संशय व विपर्यय होना संभव है इसलिए अकेले एक ही बुद्धि से कार्य का निर्णय नहीं करना चाहिए ।।5। विचारज्ञ का लक्षण : ___ स खलु विचारनो यः प्रत्यक्षेणोपलब्धमपि साधु परीक्ष्यानुतिष्ठति ॥6॥ अन्वयार्थ :- (खलु) मिरकर से (गः) माह (विवश: विधारय. (प्रत्यक्षेण) स्वयं देखे हुए (उपलब्धम्) प्राप्त (अपि) भी (साधु) सम्यक् (परीक्ष्य) विवेचना कर (अनुतिष्ठति) अनुकरण करता है । विशेषार्थ :- जो मनुष्य प्रत्यक्ष द्वारा जानी हुई वस्तु को भी अच्छी तरह परीक्षा संशय, भ्रम व अज्ञानं रहित निश्चय-करके उसमें प्रवृत्ति करता है, उसे निश्चय से विचार-विचारशास्त्र का वेत्ता कहते हैं 16॥ ऋषिपुत्रक ने कहा है : विचारज्ञः स विज्ञेयः स्वयं इष्टेऽपि वस्तुनि । तावन्नो निश्चयं कुर्याद् यावन्नो साधु वीक्षितम् ॥ अर्थ :- जो व्यक्ति स्वयं देखी हुई वस्तु की भले प्रकार जांच किये बिना उसका निश्चय नहीं करता-परीक्षण कर ही निर्णय करता है,उसे ही "विचारज्ञ" कहते हैं 11 ॥ बिना विचारे कार्य करने से हानि : अतिरभसात् कृतानि कार्याणि किं नामानर्थं न जनयन्ति 17 ॥ अविचार्य कृते कर्मणि यत् पश्चात् प्रतिविधानं गतोद-के सेतु बन्धनमिव ।।8।। अन्वयार्थ :- (अतिरभसात्) अतिवेग से (कृतानि) किये (कार्याणि) कार्य (किम् नाम) क्या क्या (अनर्थम्) अनर्थों को (न) नहीं (जनयन्ति) उत्पन्न करते ? (यत्) जो (कर्मणि) कार्य हो चुका (पश्चात्) पुनः (प्रतिविधानम्) प्रतिकार करे वह (उदके) जल के (गते) चले जाने पर (सेतुः) पुल (बन्धनम्) बांधने (इव) समान है। विशेषार्थ :- विचार किये बिना ही सहसा जल्दीबाजी में किये बिना ही गये कार्य लोक में किन-किन इष्ट कार्यों को नष्ट नहीं करते ? सभी प्रकार के अनर्थों को करने वाले होते हैं ॥ भागरी ने भी कहा है: सगुणमविगुणं वा कुर्वता कार्यमादौ, परिणतिरवधार्यायलतः पण्डितेन । अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः ।।।। 334
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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