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________________ नीति वाक्यामृतम् अर्थ :- प्रत्यक्षदर्शी, दार्शनिक व विद्वान व प्रामाणिक पुरुषों द्वारा किया हुआ विचार प्रतिष्ठित-सत्य व मान्य । होता है । अतः प्रत्यक्ष, अनुमान व आगम प्रमाण द्वारा किये गये निर्णय को "विचार" कहते हैं । "स्वयं दृष्टं प्रत्यक्षम्" ॥३॥ अन्वयार्थ :- (स्वयं) अपने से (दृष्टम्) देखा गया (प्रत्यक्षम्) प्रत्यक्ष है ।। विशेष :- नेत्रों के समक्ष होने वाले कार्यों को प्रत्यक्ष कहते हैं ।। ज्ञान मात्र से प्रवृत्ति : न ज्ञान मात्रत्मात पेलावतां प्रवृत्तिनिवृत्तिर्वा ।।। अन्वयार्थ :- (ज्ञान मात्रत्वात्) सामान्य ज्ञान मात्र से (प्रेक्षावताम्) बुद्धिमानों की (प्रवृत्तिः) कार्य में प्रवृत्ति (वा) अथवा (निवृत्तिः) विकर्षण (न) नहीं [भवति] होती है । विशेषार्थ :- सुबुद्ध पुरुषों को योग्य-हित में प्रवृत्ति व अयोग्य-अहित में निर्वृत्ति ज्ञान मात्र से नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ज्ञान सामान्य में संशयादि भी हैं । यथा मृगतृष्णा-सूर्य रश्मियों से चमकती बालू को किसी पुरुष ने जल समझ लिया, अब उसे अनुमान प्रमाण से निर्णीत करना चाहिए अन्यथा भ्रान्ति बनी रहेगी । वह विचारे कि ग्रीष्म काल में क्या मरुभूमि में जल हो सकता है ? नहीं हो सकता 1 पुनः किसी विश्वस्त पुरुष से पूछकर निर्णय ले कि वहाँ जल है या नहीं? यदि नकारात्मक उत्तर मिले तो वहाँ से निर्वृत्त होना चाहिए । अतः ज्ञानमात्र से सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए 14॥ गुरु विद्वान ने भी कहा है : दृष्ट मात्रान्न कर्तव्यं गमनं वा निवर्तनम् । अनुमानेन नो यावदिष्टवाक्येन भाषितम् ।।1।। अर्थ :- बुद्धिमान को मात्र देखने से किसी पदार्थ को ग्राह्य व अग्राह्य नहीं समझना चाहिए । अर्थात् प्रवृत्ति व निवृत्ति नहीं करना चाहिए । अपितु अनुमान से तथा इष्ट पुरुष के वचनों से प्रमाणित कर निर्णय करना चाहिए 14॥ ज्ञानमात्र से निवृत्ति : स्वयं दृष्टेऽपिमतिर्विमुह्यति संशेते विपर्यस्यति वा किं पुनर्न परोपदिष्टे वस्तुनि ।।5॥ अन्वयार्थ :- (स्वयं) अपने आप (दृष्टे) देखने पर (अपि) भी (मतिः) बुद्धि (विमुह्यति) मूढ़ हो जाती है (संशेते) सन्देह होता है (विपर्यस्यति) विपरीत होती है (वा) एवं (किम्) क्या (पुनः) फिर (परोपदिष्टे) दूसरे के द्वारा कही (वस्तुनि) वस्तु में (न) नहीं [भवति] होता है ? विशेषार्थ :- यदि स्वयं की देखी हुई वस्तु में भी मतिभ्रम-अज्ञान, विपरीतता व संशय होना संभव है तो
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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