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________________ नीति वाक्यामृतम् विचार समुद्देश विचारपूर्वक कर्तव्य : नाविचार्य कार्य किमपि कुर्यात्।n ॥ अन्वयार्थ :- (किम्) कुछ (अपि) भी (कार्यम्) कार्य (अविचार्यम्) बिना विचारे (न) नहीं (कुर्यात्) करे । । विशेषार्थ :-नीतिज्ञ. पुरुषों को प्रत्येक कार्य के सम्पादन के पूर्व उसके फल के सम्बन्ध में वितर्कना करना चाहिए. । बिना विचार किया गया कार्य विघ्न कारक हो सकता है ।। जैमिनि विद्वान ने भी कहा है : अपि स्वल्पतरं कार्य नाविचार्य समाचरेत्। यदीच्छेत् सर्वलोकस्य शंसां राजा विशेषतः ।।1।। अर्थ :- प्रजा द्वारा प्रतिष्ठा व स्नेह चाहने वाले राजाओं को सूक्ष्म कार्य भी बिना विचार नहीं करना चाहिए। प्रत्यक्ष प्रमाण, प्रामाणिक पुरुषों के वचन व युक्ति द्वारा निर्णीत करके ही शासकों को शासन सम्बन्धी कार्यों को करना चाहिए 111 ॥ विचार प्रत्यक्ष का लक्षण : प्रत्यक्षानुमानागमैर्यथावस्थित वस्तु व्यवस्थापन हेतुर्विधारः ॥2॥ अन्वयार्थ :- (प्रत्यक्ष, अनुमान, आगमै:) प्रत्यक्ष, अनुमान व आगम प्रमाण द्वारा (यथावस्थित) जैसी की तैसी (वस्तुव्यस्थापन) पदार्थ व्यवस्था करने का (हेतुः) साधन (विचारः) विचार [अस्ति] है 12॥ विशेषार्थ :- वस्तु का जैसा स्वभाव है उसकी निर्णिति प्रत्यक्ष प्रमाण अनुमान या आगम प्रमाणों द्वारा होती है । न कि केवल प्रमाण से । अतः तीनों प्रमाणों द्वारा वस्तु स्वरूप ज्ञात करना "विचार" कहा जाता है।2।। शुक्र विद्वान ने भी कहा है : दृष्टानुमानागमईयों विधारः प्रतिष्ठितः। स विचारोऽपिविज्ञेय स्त्रिभिरेतैश्च यः कृतः ।।।
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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