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________________ नीलिवामामुत्रम् अर्थ :- विद्वान पुरुष सार्थक व निरर्थक कार्य करते समय सर्वप्रथम उसका प्रतिफल-परिणाम विचारते हैं क्योंकि बिना विचारे किये गये कार्य उतावली में चारों तरफ विपत्तियों को उत्पन्न कर देते हैं । वे हृदय को भेदन । करते हैं तथा कीली के समान चभनेवाले होते हैं । 17॥ जो मनुष्य बिना विचारे उतावली में आकर कार्यों को कर बैठता है और कटु फल आने पर उसका प्रतीकारदूर करने का उपाय करता है, उसका वह प्रतिकार नदी का पूर उतर जाने के बाद सेतु-पुल बांधने के समान हैं। अर्थात् पानी बह जाने पर बांध बांधने से क्या प्रयोजन ? कुछ भी नहीं । नैतिक पुरुषों को विचारपूर्वक कार्य करना चाहिए । कहा भी है: बिना विचारे जो करै फिर पाछे पछताय । काम बिगाड़े आपनो, जग में होय हंसाय ।। शुक्र विद्वान ने कहा है : सर्वेषामपि कार्याणां यो विधानं न चिन्तयेत् । पूर्व पश्चात् भवेद् व्यर्थं सेतुर्नष्टे यथोदके 11॥ अर्थ :- जो व्यक्ति कार्य करने के पूर्व उनका अनर्थ परिहार नहीं विचारता पश्चात् प्रतिक्रिया करने का उद्यम करता है, उसका कार्य-प्रयत्न प्रवाह-जल प्रवाह के चले जाने पर सेतु बन्ध के समान निरर्थक है-व्यर्थ है । अब पश्चाताप के सिवाय अन्य फल नहीं मिलता । अविवेकी, सहसा कार्य कर कार्य का भी नाश करता है और अन्त में पश्चाताप भी करता है ।। अतः विचारपूर्वक कार्य करना चाहिए ।। राज्यप्राति के चिन्ह : आकारः शौर्यमायतिर्विनयश्च राजपुत्राणां भाविनो राज्यस्य लिङ्गानि ॥१॥ अन्वयार्थ :- (आकार:) आकृति (शौर्यम्) शूरता (आयति:) शासन विज्ञान (च) और (विनयः) विनय (राजपुत्राणाम्) राजकुमारों के (भाविनः) भविष्य में (राज्यस्य) राज के (लिङ्गानि) चिन्ह हैं 19 ॥ विशेषार्थ :- शारीरिक सौन्दर्य-रूप-लावण्य,वीरत्व, राजनीति सम्बन्धी विज्ञान और विनय ये राजपुत्रों के भविष्य में राजा बनने के चिन्ह हैं ।। अर्थात् इन गुणों से सम्पन्न पुरुष राजा बनेंगें-राज्य श्री के भोक्ता होंगे इसके परिचायक होते हैं IIII विद्वान राजपुत्र ने भी कहा है : आकारोविक्रमो बुद्धि विस्तारो नम्रता तथा । वालानामपि येषां स्युस्ते स्युर्भूपा नृपास्मज्ञाः ॥ ___ अर्थ :- जिन राजपुत्रों में शारीरिक सौन्दर्य, स्वाभाविक वीरता, राजनीति का परिज्ञान, सैनिक व कोष सम्बन्धी ए
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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