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________________ नीति वाक्यामृतम्। व्रत विद्या द्वारा ठगने में निपुण, सन्यासो वेषधारी गुप्तचर को "तापस" कहते हैं 13॥ बौना अर्थात जिसके समस्त शरीराङ्गोपाङ्ग छोटे हों उसे “किरात” गुप्तचर कहा जाता है 1141 घर-घर में जाकर वस्त्र में लिखित चित्रों को दिखाने वाला अथवा कोटवाल-गलाफाड़ कर चिल्लाने वाला गुप्तचर "यमपट्टिक" कहलाता है 115 | भुजंग क्रीड़ा कराने में निपुण-सपेरा का वेष में गुप्तचर का कार्य करने में निष्णात "अहितुण्डिक" गुप्तचर कहा जाता है ।16॥ शराब बेचने वालों के रूपधारी को "शौण्डिक" गुप्तचर कहते हैं 117॥ जो गुप्तचर रात्रि में नाट्यशाला में जाकर परदा लगाकर नाना रूप धारण कर तमाशा दिखाता है उसे "शौभिक" कहते हैं ।।18 ॥ तस्कर अथवा कैदी के वेष में वर्तमान गुप्तचर को "पाटच्चर" कहते हैं ।19 | जो गुप्तचर वेश्यादि गमन व्यसना सक्तों को वेश्यादि से परिचय कराकर अपनी आजीविका चलाते हैं उन्हें राजकीय कार्यों के की प्रयोजनों को सिद्धि करते हैं उन्हें "विट" कहते हैं 120॥ समस्त दर्शकों या श्रोताओं को हंसाने में प्रवीण गुप्तचर को"विदूषक" कहा जाता है । 21॥ कामशास्त्र के ज्ञाता गुप्तचर को "पीठमई" कहते हैं । 22 ॥ और भी आगे : गीताङ्गपटप्रावरणेन नृत्यवृत्त्याजीवी नर्तको नाटकाभिनयरङ्ग नर्तको वा ? 123॥ रूपाजीवावृत्युपदेष्टा गायकाः ।।24॥ गीतप्रबन्धगति विशेष वादक चतुर्विधातोद्य प्रचार कुशलो वादकः 1125 ॥ वाग्जीवी वैतालिकः सूतो वा 126॥ गणकः संख्याविद् दैवज्ञो वा 1127॥ शाकुनिकः शकुनवक्ता 128॥ भिषगायुर्वेद विवैद्यः शस्त्र कर्मविच्च 129॥ ऐन्द्रजालिक तन्त्र युक्त्या मनोविस्मयकरो मायावी वा 180 ॥ नैमित्तिको लक्ष्यवेधी दैवज्ञो वा ।31॥ महासाहसिकः सूदः 11320 पिवित्र भक्ष्यणता आशलिकः ॥७॥ अङ्गमर्दन कलाकुशलोभारवाहको वा संवाहकः ॥34॥ द्रव्यहेतोः कृच्छ्रेण कर्मणा यो जीवितविक्रयी स तीक्ष्णोऽसहनो वा ॥35॥ बन्धूस्नेह रहिताः क्रूराः ।।6॥ अलसाश्च रसदाः 107 ॥ जड-मूक-बाधिरान्धाः प्रसिद्धाः 138॥ विशेषार्थ :- कमनीय वस्त्रों से अलंकृत होकर स्त्री वेष में गीत-नाचकर आजीविका चलाने वाले हों अथवा नाटकादि अभिनय प्रदर्शन करने वाले "नर्तक" गुप्तचर कहे जाते हैं ।।23 ॥ __ अन्वयार्थ :- (रूपाजीवा वृत्तिः) वेश्यावृत्ति संचालक-पुरुष वशीकरण विद्या सिखाने से आजीविका चलाने वाला - (उपदेष्टा) उपदेश करने वाला (गायकाः) गायक | 24॥ (गीतप्रबन्धगतिः) गीत सम्बन्धी प्रबन्धों के ज्ञातावाद्य बजाने (विशेषः) वाला (वादक) बजाने वाला (चतुर्विधातोद्य प्रचार कुशलो) चार प्रकार के वाद्य वादन में चतुर (वादक:) "वादक" है ।25।। (वाग्जीवी) स्तुतिपाठक (वैतालिक:) ("वाग्जीवी") है 126॥ (संख्याविद्) गणितज्ञ (वा) अथवा (दैवज्ञः) ज्योतिषज्ञ (गणक:) "गणक" है ।।27 ॥ (शाकुनिक:) शकुनज्ञाता (शकुनवक्ताः ) शकुनवक्ता है 128॥ (भिषक) वैद्य (आयुर्वेद) शास्त्र (विद) ज्ञाता (वैद्यः) वैद्य (शस्त्रकर्म) शस्त्रसंचालन (वित्) जानने वाला 129 ॥ (तन्त्रयुक्त्या) आश्चर्यकर कला ज्ञाता द्वारा (वा) अथवा (मनोविस्मयकारी) आश्चर्यचकित मन को करने वाला (मायावी) मायाचारी (ऐन्द्रजालिक:) ऐन्द्रजाली 130 ॥ (नैमित्तिक:) निमित्त ज्ञाता (लक्ष्यवेधी) लक्ष्यज्ञाता (वा) अथवा (दैवज्ञः) ज्योतिषी 137॥ (महासाहसिकः) अति साहसी (सूदक:) सूदक ।।32 ॥ नाना भोजन प्रणेता (आरालिक:) (अंगमर्दनक- लाकुशल:) उवटनादि लगाने की कला में चतुर (वा) अथवा (भारवाहक:) भार ढोने वाला (संवाहकः) है । 341 (द्रव्यहेतोः) धन को (कृच्छ्रेण) कष्टमय (कर्मणा) कर्म द्वारा (यः) जो (जीवितविक्रयी) 330
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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