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________________ नीति वाक्यामृतम् विशेषार्थं :- किसी भी शास्त्र का अध्ययन कर छात्रवेषधारी गुसचर "कापटिक" कहलाता है । 110 ॥ बहुत सी शिष्यमण्डली सहित, विशिष्ट बुद्धि सम्पन्न और जिसकी जीविका राजा के आश्रय से चलती हो ऐसे गुप्तचर कोउदास्थित कहते हैं 1 गृहपति वैदेहिक ग्राम कूटिश्रेष्ठिनौ ॥12 ॥ अन्वयार्थ :- ( ग्रामकूट :) कृषकवेषी (गृहपतिः) गृहपति (श्रेष्ठिनः ) सेठ के रूप में रहने वाला (वैदेहिकः) वैदेहिक 1112 ॥ विशेष :- जो गुप्तचर कृषक के रूप में रहता है उसे गृहपति गुप्तचर कहते हैं ।। एवं जो श्रेष्ठी-सेठ के भेष में रहकर गुप्तचर (खुफिया) का काम करता है उसे "वैदेहिक " गुप्तचर कहते हैं 1112 वाह्यव्रतविद्याभ्यां लोक दम्भहेतुस्तापसः ||13 ॥ अल्पाखिल शरीरावयवः किरातः 114 11 ॥115 ॥ 111611 यमपहिको गलनोटिकः प्रतिगृहं चित्रपटदर्शी वा अहितुण्डिकः सर्पक्रीडा प्रसरः कल्यपालः 17 I ।।19 ॥ शौण्डिक : शौभिकः क्षपायां पढ़ावरणेन रूपदर्शी ॥18 ॥ पाटच्चरश्चौरी वन्दीकारो वा व्यसनिनां प्रेषणानुजीवो विट: सर्वेषां प्रहसनपात्रं विदूषकः कामशास्त्राचार्य: 1 120 11 | 121 || पीठ मई : 1122 11 अन्वयार्थ :- ( वाह्यव्रतविद्याभ्याम्) बनावटी व्रत व विद्या द्वारा ( लोकदम्भ ) मनुष्यलोक को ठगने का (हेतुः) कारण (तापसः ) 1|13|| ( अल्पः ) छोटे (अखिल ) सम्पूर्ण (शरीर अवयवः) शरीर के आङ्गोपाङ्ग (किरात) किरात है 1114 ॥ ( प्रतिगृहम् ) प्रत्येक घर ( यमपट्टिकः) कपड़े में चित्रित पटदर्शी (गलत्रोटिक : ) गलाफाड़कर चिल्लाना (वा) अथवा (चित्रपटदर्शी) चित्र दिखाने वाला 1115 ॥ (सर्प क्रीडा प्रसरः) अहिक्रीडा प्रचारक (अहितुण्डकः) अहितुण्डिक है 1116 ॥ (कल्यपालः) शराब बेचने वाले (शौण्डिकः) शौण्डिक ||17 || ( क्षपायाम्) रात्रि में (पटावरणेन) चित्रपट फैलाकर (रूपदर्शी) रूप दिखाने वाले (शौभिकः) शौधिक (चौरो) चोर रूप में (वा) अथवा (वन्दीकारः) कैदी (पाटच्चरः) पाटच्चर [अस्ति ] है (व्यसनिनाम्) विभिन्न व्यसनों में लोगों को वेश्यादि के यहाँ (प्रेषण:) भेजने से (अनुजीवः) जीविका वाला (विटः) विट है ॥20 ॥ (सर्वेषाम् ) सबको (प्रहसन ) हंसाने का (पात्रम्) पात्र (विदूषकः) विदूषक 1121 ॥ ( कामशास्त्र) काम शास्त्र का (आचार्य) निपुण (पीठमई :) पीठ मर्द कहलाता है । 122 | विशेषार्थं :- गुप्त रहस्यों का ज्ञाता, प्रतिभासम्पन्न गुप्तचर को "छात्र" कहते हैं 1113 ॥ कपट युक्त बनावटी 329
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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