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________________ श्लोक नास्ति संघातस्य न दायादादपरः ना त लोहं न चातिभग्नं नयोदिता न विश्वास घातात् न हि शास्त्र शिक्षाक्रमेण न कस्यापि aratमहत्त्वमात्मनो न खलु परमाणोरल्पत्वेन न खलु निर्निमितं नवसेवक : परत्रा जिघांसु पात्रं च त्रिविधं प्रत्यहं किमपि परार्थ भाखाहिन परपरिगृहीता प्रकृतिपुरुषज्ञो प्रश्रयसत्कारादि प्रयत्न: पर निमित्तको प्रशमैकचित्तं परिपालको हि राजा प्रणामावसान: कोपोगु प्राणावसान: कोपोक्ष प्रियवचनावसान: कोपोव पण्यतुलामान प्रतापवति राज्ञि प्रजापालनाथ पानस्त्रीसंगादिजनितो " समुद्देश 888888888 30 30 30 30 30 30 30 32 32 32 32 32 1 1 1 3 4 5 5 5 5 7 7 7 7 8 8 9 10 नीति सं. 37 53 58 66 81 83 88 29 56 57 58 69 6 12 29 5 2 62 14 30 38 23 36 37 38 16 22 3 38 श्लोक प्रमादो गोत्रस्खलनादिहेतुः पीयूषमपिवतो बालस्य प्रियंवदः शिरवीव परस्पर मर्मकथन प्रमादवान् प्रामादपि पतिवरा इव पुरोहितमुदितोदितकुलशीलं पुण्यावातिः प्रज्ञयातिशयानो न पितरमिव परगृहे सर्वोऽपि परकार्येषु परोक्षे किलोपकृतं परेणाशु परमर्मज्ञः प्रभूतान्तेवासी पाटच्चरश्चौरो प्रत्यक्षानुमाना प्रकृतेर्विकृतिदर्शनं परचित्तानुकूल्येन पानशौण्डश्चित्त पिशुन: सर्वेषाम् परपरिग्रहाभिगमः प्रजाविभवो हि प्रत्युपकर्तुरुपकारः परमभकार्यमश्रद्धेयं पूजिर्त प्रजाकाय प्रासादध्वंसनेन पूज्यै समुद्देश eeeeeee 10 10 10 10 10 10 10 11 11 11 11 11 11 11 13 14 14 14 15 15 16 16 16 16 16 17 17 17 17 = 17 17 नीति सं. 39 54 129 140 145 147 158 1 7 20 24 31 33 45 7 9 22 ∞ ∞ NPN 11 19 12 4 8 12 18 27 10 26 31 32 40 52
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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