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________________ श्लोक पुरुषस्य परन्तु भाग्यानां पुनः पुनरभियोगे परस्परक लहो पशुधान्यहिरणयसंपदा परिगृहीतासु पुरुषमुष्टिस्था परक्षेत्र प्रादुर्भवत्क्षुत्पिपासोऽभ्यङ्गस्त्रानं प्राणयुपयातेन परमात्मना पारावतकामो प्रकृतिरुपदेश: पर्वणि पर्वणि पराधीनेष्वर्थेषु परोपकारी योगिनां परस्त्री द्रव्य रक्षणेन प्रतिपाद्यानुरूप परोपधान प्रजापालनं हि प्रभूतमपि परदोषश्रवणे परकलत्रदर्शने प्रार्थना कं नाम प्रवास: चक्रवर्तिनामपि परस्परविवादे पौरुषमवलम्ब प्रतिपन्न - प्रथमाश्रमः प्रबृद्धप्रताप पार्ष्णिग्राहाद्यः पार्ष्णिग्राहामित्र समुद्देश 17 17 18 18 19 24 24 24 25 25 25 25 25 25 26 26 26 26 26 26 26 27 27 27 2 2 2 2 2 2 2 27 28 29 29 29 29 29 नीति सं. श्लोक पणबन्धः परस्यात्मार्पणं 54 52 57 66 1 17 42 87 27 78 91 99 107 110 9 33 38 43 55 68 69 24 25 44 68 21 12 17 19 27 28 प्रथमपक्षे परविश्वास पर प्रणेया परकोपप्रसाद प्रज्ञा मोधं प्रजाहता: परैः स्वस्था प्रहरतो पृष्ठत: पूर्णसर: प्रतिहत प्रतापी परमण्डला पराक्रमकर्कशः पुरुष प्रमाणोत्मेध पणबन्धेन प्राणवधे पक्वान्नादिव पुष्पयुद्धमपि पर्वता इव राजानो पुण्यवतः परपैशून्योपायेनराज्ञां फल्गुभुजमननुकूलं बीज भोजिन: ब्राह्मण क्षत्रिय ब्रह्मचारीगृह ब्रह्मदेवपित्रतिथि = : S = समुद्देश 2222222222222222 29 29 29 29 29 29 30 30 30 30 30 30 30 30 30 30 31 32 32 32 32 32 32 25 1 5 S 5 नीति सं. 44 48 50 85 98 99 9 9 10 12 21 ⚫30 42 47 5 8 3 8 2 0 0 2 62 98 10 19 27 30 33 38 55 40 45 6 7 20
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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