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श्लोक
पुरुषस्य
परन्तु भाग्यानां
पुनः पुनरभियोगे
परस्परक लहो
पशुधान्यहिरणयसंपदा
परिगृहीतासु
पुरुषमुष्टिस्था
परक्षेत्र
प्रादुर्भवत्क्षुत्पिपासोऽभ्यङ्गस्त्रानं
प्राणयुपयातेन
परमात्मना
पारावतकामो
प्रकृतिरुपदेश:
पर्वणि पर्वणि
पराधीनेष्वर्थेषु
परोपकारी योगिनां
परस्त्री द्रव्य रक्षणेन
प्रतिपाद्यानुरूप
परोपधान
प्रजापालनं हि
प्रभूतमपि
परदोषश्रवणे
परकलत्रदर्शने
प्रार्थना कं नाम
प्रवास: चक्रवर्तिनामपि
परस्परविवादे
पौरुषमवलम्ब
प्रतिपन्न - प्रथमाश्रमः
प्रबृद्धप्रताप
पार्ष्णिग्राहाद्यः पार्ष्णिग्राहामित्र
समुद्देश
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नीति सं. श्लोक
पणबन्धः
परस्यात्मार्पणं
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1
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प्रथमपक्षे
परविश्वास
पर प्रणेया
परकोपप्रसाद
प्रज्ञा मोधं
प्रजाहता:
परैः स्वस्था
प्रहरतो
पृष्ठत:
पूर्णसर:
प्रतिहत प्रतापी
परमण्डला
पराक्रमकर्कशः
पुरुष प्रमाणोत्मेध
पणबन्धेन
प्राणवधे
पक्वान्नादिव
पुष्पयुद्धमपि
पर्वता इव राजानो
पुण्यवतः
परपैशून्योपायेनराज्ञां
फल्गुभुजमननुकूलं
बीज भोजिन:
ब्राह्मण क्षत्रिय
ब्रह्मचारीगृह
ब्रह्मदेवपित्रतिथि
=
:
S
=
समुद्देश
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5
S
5
नीति सं.
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