________________
नीति वाक्यामृतम्
12)
सेनापति समुद्देश
सेनापति के गुण-दोष व राजसेवक की उन्नति :
अभिजनाचार प्राज्ञानुरागशौचशौर्यसम्पन्नः प्रभाववान् बहुबान्धवपरिवारो निःखानची पायप्रयोगविषुगः समभ्यस्त समस्त वाहनायुधयुद्धलिपिभाषात्मपरिज्ञानस्थिति सकलतन्त्रसामन्ताभिमतः, साङ्ग्रामिकाभिरामिकाकार शरीरो, भर्तुरादेशाभ्युदयहितवृत्तिषु निर्विकल्पः स्वामिनात्मवन्मानार्थ प्रतिपत्तिः, राजचिन्हैः सम्भावितः, सर्वक्लेशायाससह इति सेनापति गुणाः ॥ ॥
परैश्चप्रधृष्यप्रकृतिरप्रभाववान् स्त्रीजितत्वमौद्धत्यं व्यसनिताऽक्षयव्यय- प्रवासोपहतत्वं तन्त्राप्रतीकारः सर्वैः सहविरोधः परपरीवादः परुषभासित्व--मनुचितज्ञताऽसंविभागित्वं स्वातन्त्र्यात्मसम्भावनोपहतत्वं स्वामिकार्यव्यसनो
-पेक्षः सहकारि कृत कार्य विनाशो राजहितवृत्तिषु सेर्ष्यालुत्वमिति सेनापति दोषाः ॥12 ॥
स चिंर जीवति राजपुरुषो यो नगरनापित इवानुवृत्तिपरः ॥13 ॥
अन्वयार्थ :- (अभिजनः) कुलीन ( आचारप्राज्ञाः) आचार व्यवहार ज्ञाता (अनुरागा ) स्वामी व सेवकों से अनुरक्त, (शौच शौर्य सम्पन्नः) पवित्र हृदय, शूरवीर ( प्रभाववान्) प्रभुत्व सम्पन्न (बहुवान्धव परिवार: ) अनेक भाई बन्धु परिवार वाला (निखिलनयउपाय प्रयोग निपुनः ) राजनीति के नय प्रयोगों का ज्ञाता (समस्त ) सम्पूर्ण (वाहनआयुध-युद्ध - लिपि - भाषात्म परिज्ञान स्थितिः समभ्यस्तः) वाहन, अस्त्र शस्त्र संचाल, संग्राम, लेखन क्रिया, भाषात्मक परिज्ञान से स्थिति को समझने में अभ्यस्त, (सकलतन्त्र सामन्त अभिमतः ) सम्पूर्ण युद्धादि सम्बन्धी तंत्र व अभिप्राय ज्ञाता, (साङ्ग्रामिक:, अभिरामिक, शरीर, आकार: ) योद्धा के अनुकूल शरीराकृति वाला, (भर्तुः) स्वामी को (आदेश, अभ्युदय, हितवृत्तिषु निर्विकल्पः ) आदेश, वृद्धि, हित कार्य वृत्ति में तत्पर (स्वामिना) स्वामी के द्वारा ( आत्मवत् ).
311