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नीति वाक्यामृतम् ।
N अपने समान, (मान, अर्थ, प्रतिपत्तिः) सम्मान व अर्थ प्राप्त हो, दिया हो (राजचिह्न:) छत्र, चमरादि राज चिन्हों ी
से (सम्भावितः) युक्त (सर्वक्लेश, आयास सहः सम्पूर्ण कष्टों के सहने में समर्थ (इति) ये (सेनापतिगुणाः) सेनापति के गुण हैं ॥
भावार्थ-विशेष :- सेनाध्यक्ष पदासीन होने योग्य मनुष्य में निम्नगुणों का होना अनिवार्य है - कुलीन उच्च कुल वंश का होना, आचार-व्यवहार में कुशल होना, राजविद्या प्रवीण, स्वामी व सेवकों के प्रति अनुरक्त, पवित्राभिप्रायी, विशाल परिवार वाला, समस्त नैतिक साम-दाम आदि प्रयोग, जल अग्नि स्तंभन आदि विद्याओं में निपुण, वाहन, खड्गादि संचालन में, युद्ध एवं विभिन्न देशीय भाषाओं में निपुण होना, आत्मज्ञानी, सेना, स्वामी, आमात्य आदि का प्रियपात्र, शत्रुओं से लोहा लेने में समर्थ, उत्साही, स्वामी की आज्ञापालन में समर्थ, विजयाभिलाषी, राष्ट्रहित चिन्तक, विकल्परहित, जिसे स्वामी से पूर्ण सम्मान प्राप्त है, धन प्राप्त है, प्रतिष्ठालब्ध है, छत्र चामरादि राजचिन्हों से युक्त, और समस्त प्रकार के कष्ट व खेदों को सहने वाला सेनाध्यक्ष होना चाहिए । शक्र विद्वान ने भी कहा
सर्वैर्गुणैः समोपेतं सेनानाथं करोति यः ।
भूमिपालो न चाप्नोति सशत्रुभ्यः पराभवम् ॥1॥ अर्थ :- जो नृपति समस्त गुणयुक्त सेनाध्यक्ष नियुक्त करता है - उसे शत्रु कृत पराभव परास्त नहीं करता 111॥
अन्वयार्थ :- (स्वैः) स्वयं से (च) और (परैः) दूसरों से (प्रधृष्यप्रकृतिः) पराजय प्राप्त (अप्रभाववान:) प्रभुताहीन, (स्त्रीजितत्वम्) नारीवश (औद्धतम्) अभिमानी (व्यसनिता) व्यसनासक्त (अक्षयव्ययप्रवासो पहतत्वम्) मर्यादा से अधिक व्यय करने वाला (तंत्रस्य) राजचक्रों का (अप्रतीकारः) विरोध करने में असमर्थ (सर्वैः) सबके (सह) साथ (विरोधः) विरोधी (परपरिवादः) निन्दक (परुषभासित्वम्) कटुभाषी (अनुचित-ज्ञाता) अनुचित विचार (असंविभागत्वम्) आतिथ्य नहीं करने वाला, (स्वातन्त्र्यः) स्वच्छन्द (आत्मसंभावनो-पहतत्वम्) स्वाभिमान विघाती (स्वामीकार्यव्यसनोपेक्षः) स्वामी के कार्य की उपेक्षा करने वाले (सहकारिणः) सहायकों के (कार्यविनाशः) कार्य का विनाशक (राजहितवृत्तिषु) राज के कार्यों में (ईर्ष्यालुत्वम् च) और ईर्ष्या करने वाला (इति) ये (सेनापतिदोषाः) सेनानायक के दोष हैं ।2 || (स:) वह (चिरम्) बहुतकाल (जीवति) सुखी रहता है (य:) जो (नगरनापितः) शहर के नाई (इव) की भांति (अनुवृत्तिः परः) राजपुरुषों का अनुकरण में तत्पर रहता है IBIL
विशेषार्थ :- जिस भूपाल की प्रकृति-प्रधान आमात्य, सेनापति आदि आत्मीय व पर शत्रुओं से परास्त हो सकें, जो तेज विहीन, स्त्री कृत उपद्रवों के वश-अजितेन्द्रिय अहंकारी, व्यसनासक्त, अपनी मर्यादा से अधिक व्यय करने वाला, अनुचित बातों का ज्ञाता, अपनी कमाई आप ही खाने वाला, स्वच्छन्द स्वभावी, स्वामी के कार्य व आपत्तियों का उपेक्षक, युद्ध कार्य में सहयोगी योद्धाओं का कार्य विद्यातक, राजहितचिन्तकों से ईर्ष्या करने वाला ये सर्व सेनापति
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