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नीति वाक्यामृतम्
N हठी को उपदेश करना :
दुराग्रहस्य हितोपदेशो वधिरस्याग्रतो गानमिव 10॥ अन्वयार्थ :- (दुराग्रहस्य) हठवादी को (हितोपदेश) हितकारी उपदेश देना (वधिरस्य) बहरे के (अग्रतः) सामने (गानम्) गान गाने (इव) समान [अस्ति] है ।
विशेष :- हठग्राही पुरुष को धर्मोपदेश देना बहरे मनुष्य को भजन सुनाने के समान है । वधिर सुनता ही नहीं तो सुनाना व्यर्थ है और यह मानता नहीं, इसे भी उपदेश देना व्यर्थ है । ॥ कर्तव्यज्ञान शून्य को शिक्षा -
अकार्यज्ञस्य शिक्षण मन्धस्य पुरतो नर्तनमिव ।।41॥ अन्वयार्थ :- (अकार्यज्ञस्य) कर्तव्यज्ञानविहीन को (शिक्षणम्) शिक्षा देना (अन्धस्य) नेत्रविहीन के (पुरतः) सामने (नर्तनम्) नाचने के (इव) समान है ।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार नेत्ररहित पुरुष के समक्ष नृत्य करना व्यर्थ श्रम है उसी प्रकार कर्तव्य ज्ञान विहीन को शिक्षा देना व्यर्थ है । लाभकारी नहीं 147 ।। मूर्ख को योग्य बात कहना :
अविचारकस्य युक्ति कथनं तुषकण्डनमिव 142॥ अन्वयार्थ :- (अविचारकस्य) विचार शून्य के लिए (युक्तिः) कारणविशेष (कथनम्) कथन (तुष) भूसा (कण्डनम्) कूटने (इव) के समान [अस्ति] है ।।
विवेकशून्य व्यक्ति को युक्ति संगत कथन करना भूसा को कूटने के समान निस्फल है । तुष के छड़ने से क्या कण मिलेगा ? नहीं । विद्वानों ने कहा है :
उपदेशो हि मूर्खानां के वलं दुःखबर्द्धनम् ।
पयः पानंभुजंगानां के वलं विषबर्द्धनम् ॥1॥ अर्थ :- जिस प्रकार भुजंग को दुग्ध पान कराना विषवर्द्धक होता है उसी प्रकार मूर्ख को उपदेश देना दुः ख का कारण होता है 11 ॥ नीच पुरुष का उपकार :
नीचेषु उपकृतमुदके विशीर्णं लवणमिव 143॥ अन्वयार्थ :- (नीचेषु) नीच पुरुषों का (उपकृतम्) उपकार करना (उदके) जल में (लवणम्) नमक के (इव) समान (विशीर्णम्) नष्ट होता है ।
विशेष :- दुर्जन-नीचकुलोत्पन्न पुरुषों का उपकार जल में नमक की भांति नष्ट हो जाता है । अर्थात् नीच 0 मनुष्य उपकृत नहीं होता है ।। उसके विपरीत हानि पहुँचाने वाला होता है । वादीभसिंह सूरि कहते हैं
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