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नीति वाक्यामृतम् Nसर्व कल्याणकारी होते हैं ।। वर्ग विद्वान ने कहा है :
आलापः साधु लोकानांफलदः स्यादसशंयम् । अचिरेणैव कालेण क्षीर वृक्षो यथा तथा ॥1॥
अर्थ :- जिस प्रकार दुग्ध वाला वृक्ष शीघ्र उत्तम फल देता है, उसी प्रकार सत्पुरुषों के वचन भी निःसन्देह उत्तमफल प्रदान करते हैं ।। अभिप्राय यह है कि उत्तम पुरुषों को सदैव मधुर वचन बोलना चाहिए 1131 || दुर्जन व सज्जन का स्वरूप :दुरारोहपादप इव दण्डभियोगेन फलप्रदो भवति नीच प्रकृतिः 1132।।
स महान् यो विपत्सु धैर्यमवलम्बते ।133॥ अन्वयार्थ :- (दुरारोह:) कठिनाई से चढ़ा जाने वाले (पादपः) वृक्ष दण्डा द्वारा ही फल प्रदान करता है, (दण्डाभियोग दण्टे से फायदायक भति) होता है (इव) इसी प्रकार (नीचप्रकृतिः) तुच्छ स्वभावी मनुष्य [भवति] होता है ।।
(स) वह (महान्) महापुरुष है (यः) जो (विपत्सु) विपत्ति में (धैर्यम्) साहस (आलम्बते) धारण करते हैं 1133॥
विशेषार्थ :- आम्रादि वृक्ष ऊच्च-लम्बे होते हैं । सर्वसाधारण जन ऊपर चढ़ नहीं पाते । तब वे बहुत लम्बासा डण्डा लेकर मारकर फल प्राप्त करते हैं । उसी प्रकार दुर्जन जन दण्डित होकर कार्य करने में प्रवृत्त होते हैं। भागुरि विद्वान ने लिखा है :
दण्डाहतो यथारातिर्दुरारोहो महीरुहः । तथा फलप्रदो नूनं नीच प्रकृतिरत्र यः ॥1॥
अर्थ :- जिस प्रकार शत्रु और अति उच्च (न चढ़ने योग्य) वृक्ष दण्ड से ताड़ित किये जाने पर फल देता है, उसी प्रकार नीच मनुष्य भी दण्डनीति से वशी होता है ।। नीचपुरुषों को दण्डविधान करना भी आवश्यक है 132॥ जो पुरुष विपत्ति में धैर्य करता है, वही महापुरुष है ॥ गुरु ने कहा है :
आपत्कालेऽत्र संपाप्ती धैर्यमालम्बते हि यः ।
स महत्वमवाप्नोति पार्थिवः पृथिवीतले ॥ अर्थ :- जो राजा विपत्ति-संकट आने पर धैर्य करता है वह निःसन्देह-भूमितल पर यश और वैभव प्राप्त करता है 1133 ॥
मसफल बनाने वाला दोष व कुलीन पुरुष का स्वरूप :
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