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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ :- जिस प्रकार मृदु भी जल प्रवाह विशाल चट्टानों को तोड़-फोड़ देता है उसी प्रकार साम नीति से कठोर शत्रुओं को भी सरलता से परास्त कर देता है । अभिप्राय यह है कि कोमलता- सरलता से कठिन से भी कठिन काम आसानी से हल हो जाता है 11128 ।। नीति कार कहते हैं :
युद्धं कदाचिज्जायते
अर्थ :- बुद्धिमानों को साम्यनीति से युद्ध करना चाहिए । यदि कदाचिद् आवश्यकता पड़े तो अधिक बलवान सैनिक लेकर युद्ध करना चाहिए ।
परित्यजे द्धीमानुपायैः दैवाद्धीने नापि
सामपूर्वकै : 'बलाधिकः
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प्रियवचनों से लाभ :- गुप्त रहस्य प्रकाश की अवधि व महापुरुषों के वचन :- प्रियंवदः शिखीव सदर्पानति द्विष" त्सर्पानुत्सादयति" 11129 ॥ सर्पानुच्छादयति पाठ भी है नाविज्ञाय परेषामर्थमनर्थं वा स्वहृदयं प्रकाशयन्ति महानुभावाः |1130 ॥ क्षीरवृक्षवत् फलसम्पादनमेव महनामालापः 11131 | " फलप्रदो" भी पाठान्तर है ।
अन्वयार्थ :- (प्रियम्बदः) प्रियभाषी (शिखि:) मयूर (इव) समान (सदर्पान् ) मदोन्मत्त (अपि) भी (द्विषत्) विषाक्त (सर्पान् ) उरगों को ( उत्साद्यति) नष्ट कर देते हैं ||129 ॥ ( महानुभाव:) महापुरुष (परेषाम्) दूसरों के ( अर्थम्) प्रयोजन (वा) अथवा (अप्रयोजनम् ) अनभिप्राय को (अविज्ञाय) बिना ज्ञात किये (स्वहृदयम्) अपने हृदय के भावों को (न) नहीं (प्रकाशयन्ति) प्रकाशित करते हैं ।।130 ॥ (महताम् ) महापुरुषों के (आलाप) वचन प्रयोग ( क्षीरवृक्षवत्) दूध वाले वृक्षों के समान (फलसम्पादनम् ) फल प्रदायक (एव) ही [ भवन्ति ] होते हैं 11131 ॥ विशेषार्थ मयूर की ध्वनि सुनते ही भयंकर विषधर भी भयभीत हो भाग जाते हैं, उसी प्रकार मधुरभाषी मनुष्य के समक्ष अभिमानी शत्रुरूपी भुजडग भीत हो पलायमान हो जाते हैं । मधुर भाषण शत्रुओं को भी मित्र बनाने की रामवाण औषधि है। शुक्र विद्वान ने भी कहा है कि :
यो राजा मृदुवाक्यः स्यात्सदर्पानपि विद्विषः । स निहन्ति न सन्देहो मयूरो भुजगानिव ॥1॥
अर्थ :- जिस प्रकार मयूर की मधुर 'केका' वाणी सुनते ही दर्पयुक्त भयंकर विषधर सर्प नष्ट हो जाते हैं। उसी प्रकार मधुरवाणी बोलने वाला राजा भी अहंकारी शत्रुओं को निःसन्देह नष्ट कर देता है ।1129 || उत्तम पुरुष दूसरों के हृदय की अच्छी या बुरी बात ज्ञात करके ही अपने मन की बात प्रकट करते हैं । भृगु विद्वान ने भी कहा है :
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अज्ञात्वापरकार्यं च शुभं वा यदि वाशुभम् अन्येषां न प्रकाशेयुः सन्तो नैव निजाशयम् ॥1॥
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अर्थ :- सज्जन पुरुष दूसरे के अच्छे या बुरे प्रयोजन को ज्ञात किये बिना अपना मानसिक अभिप्राय प्रकाशित नहीं करते 111 || सामने वाला सत् या असत् प्रकृति का है यह जानकर ही महापुरुष अपना अभिप्राय प्रकट करते हैं 11130 ॥
महात्माओं के हित, मित, प्रिय वचन क्षीर वृक्षों के समान सतत सुखद व हितकर होते हैं । उत्तम फलदायी