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नीतिवाक्यामृतम्
विशेषार्थ :- कायर, उद्यमहीन, डरपोक पुरुष प्रमादी बैठे रहते हैं । कार्यारम्भ शीघ्र नहीं करते । वे मात्र ख्याली पोलाव पकाते रहते हैं,' अमुक कार्य में "यह दोष है, उसमें वह दोष है" यही सोचते काल खो देते हैं। वर्ग विद्वान ने लिखा है :
अर्थ
दुर्बुद्धि मानव कार्यों में छिद्रान्वेषण कर दोषोद्भावन कर-करके उनसे विमुख हो जाते हैं । समय चला जाता है और वे भयभीत हो रह जाते हैं ।।
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भयशंका का त्यागपूर्वक कर्त्तव्य प्रवृत्ति :
कार्य दोषान् विचिन्वन्तो नराः का पुरुषाः स्वयम् । शुभं भाव्यान्यपि त्रस्ता न कृत्यानि प्रकुर्वन्ति ॥1॥
मृगाः सन्तीति किं कृषि र्न क्रियते 11123 ॥ पाठान्तर मृगाः सन्तीति किं कृषि र्न कृष्यते ?
अन्वयार्थ (मृगाः) पशु (सन्ति) हैं (इति) इस प्रकार सोचकर (किं) क्या (कृषि) खेती (न) नहीं (क्रियते) करते ? करते ही हैं। अथवा :
अजीर्णभयात् किं भोजनं परित्यज्यते ? ||114 ॥
(किम् ) क्या (अजीर्ण भयात्) पाचन नहीं होने से (भोजनम्) भोजन (परित्यज्यते) छोडा जाता
अन्वयार्थ :
है ? नहीं ।
अर्थ जिस प्रकार हिरणों- मृगों के भय से खेती करना और अजीर्ण के भय से कोई भोजन करना नहीं छोड देता, उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष विघ्नों के भय से कार्यारम्भ से विरत नहीं होते । अपितु कार्यारम्भ करते ही हैं ।।123-24
कार्यारम्भ में विघ्नों का आना:
स खलु कोsपीहाभूदस्ति भविष्यति वा यस्य कार्यारम्भेषु प्रत्यवाया न भवन्ति ॥ 125 ॥
पाठान्तर :- सखलु किं कोऽहीहाभूदस्ति भविष्यति वा यस्याप्रत्यवायः कार्यारम्भः ।।
अन्वयार्थ :- ( इह ) इस लोक में (क) कोई (अपि) भी (किम् ) क्या (अस्ति ) है ( अभूत् ) हो गया (वा) अथवा (भविष्यति ) होगा (यस्य) जिसके ( खलु ) निश्चय से ( कार्यारम्भेषु) कार्य प्रारम्भ में (प्रत्यवायाः) विघ्न (न) नहीं ( भवन्ति ) होते हैं ?
विशेषार्थ आयेगा? कोई नहीं
कौन संसार में ऐसा मनुष्य है जिसके कार्यों में विघ्न न आया हो, न आता हो और न ही । भागुरि ने भी कहा है :
तं
यस्योद्यमो भवति दैवेन
देयमिति
280
समुपैति लक्ष्मी । पुरुषावदन्ति
का