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ननोति वाक्यामृतम्
पर द्रव्ये कलत्रे च यस्य दृष्टे महात्मनः ।
न मनो विकृतिं याति स देवो न च मानवः ॥1॥ अर्थ :- जिस महात्मा का मन परधन और परस्त्री के अवलोकन करने पर भी विकृत नहीं होता, वह वास्तव में मनुष्याकार में देव ही है ।119 ।। सन्तोषी पुरुषों का कार्य :
समायव्ययः कार्यारम्भो रासिकानाम् ।।120 ॥ अन्वयार्थ :- (राभसिकानाम्) सन्तोषी पुरुषों का (कार्यारम्भः) कार्य का प्रारम्भ (सम) समान (आय व्ययः) आमदनी-खर्च भी समान होने पर संतुष्ट रहते हैं ।। हारीत विद्वान ने भी लिखा है :
आय व्ययौ समौ स्यातां यदि कार्यों विनश्यति ।
ततस्तोषेण कुर्वन्ति भूयोऽपि न त्यजन्ति तम् ।। अर्थ :- सन्तोषी पुरुष समान आय व्यय वाले कार्यों में अथवा वह भी हाथ से निकल रहा हो तो भी उसे शान्ति धैर्यपूर्वक करते हैं । प्रारम्भ किये कार्य को हानि-लाभ की ऊहा- पोह से त्याग नहीं करते हैं 120 ।। महामूरों का कार्य :
बहुक्लेशेनाल्पफलः कार्यारम्भो महामूर्खाणाम् ॥21॥ अन्वयार्थ :- (महामूर्खाणाम्) महान अज्ञानियों का (कार्यारम्भः) कार्य प्रारम्भ (बहुक्लेशेन) कठिन श्रम स (अल्पफल:) कम फल रूप [भवति] होता है ।।
अज्ञानियों का कार्यारम्भ अल्पफल और अधिक कष्ट देने वाला होता है ।
विशेषार्थ :- विवेकशून्य व्यक्ति लाभालाभ का विचार न कर कार्यारम्भ कर देता है । फल्न; लाभ तो बहुत कम होता है और श्रम अत्यधिक हो जाता है ।। वर्ग विद्वान ने कहा है :
बहु क्लेशानिकृत्यानि स्वल्प भावानि चक्र तुः ।
महामूर्खतमा येऽत्र न निर्वेदं वजन्ति च ॥1॥ अर्थ :- लोक में गधा मजूरी करने वाले मूखों की कमी नहीं है । इनका कार्य जीतोड़ परिश्रम करने पर अल्पफल देने वाला होता है । ऐसे ही कार्यों में संलग्न रहते हैं ।। अधम पुरुषों का कार्यारम्भ :
दोषभयान्न कार्यारम्भः का पुरुषाणाम् ॥122॥ पाठान्तर . "दोषभयात् कार्यानारम्भः" 1
अन्वयार्थ :- (दोषभयात्) विध्न के भय से (का पुरुषाणाम्) कायर पुरुषों का (कार्यारम्भः) काम का प्रारम्भ । (न) नहीं [भवति] होता है ।। .
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