SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - नीति वाक्यामृतम् ज्ञान, सदाचार, वीरता, शूरता आदि गुणों से विहीन है, उसको केवल श्वांस लेने मात्र से क्या लाभ ? कोई लाभ नहीं । उसका जीवन व्यर्थ ही है । जैमिनि विद्वान ने कहा है : गुणहीनश्च यो राजा स व्यर्थश्चापयष्टिवत् ॥ गुण शून्य राजा विगत जोरी वाले धनुष की भाँति निरर्थक है । विशेषार्थ :- गुण का अर्थ डोरी भी है और पुरुषोत्तम योग्य गुण भी । धनुष में डोरी न रहे तो उससे क्या प्रयोजन? उसी प्रकार नीति आचार सदाचार, शिष्टाचारादि गुण विहीन राजा से भी राज और प्रजा को क्या लाभ? कुछ भी नहीं। राजमंत्री के महत्व का कारण : चक्षुध इव मंत्रिणोऽपि यथार्थ दर्शनमेवात्मगौरव देतः moon अन्वयार्थ :- (चक्षुष) नेत्र के (इव) समान (मंत्रिणः) मंत्री की (अपि) भी (यथार्थ) यथोचित (दर्शनम्) दृष्टि (एव) ही (आत्मगौरव हेतु) आम महत्व का कारण है । जिस प्रकार नेत्रों की सूक्ष्म दृष्टि उसके महत्व गौरव को कारण है उसी प्रकार राजाओं को यथार्थ दृष्टि सन्धि, विग्रह, युद्धादि कार्य साधक मंत्र का यथार्थ ज्ञान, उसको राजा द्वारा महत्वपाने में कारण होता है । गुरु विद्वान ने भी कहा है : सूक्ष्मावलोकस्य नेत्रस्य यथा शंसा प्रजायते । मंत्रिणोऽपि सुमंत्रस्य तथा सा नृपसंभवा ॥1॥ अर्थ :- जिस प्रकार सूक्ष्मदृष्टि-युक्त नेत्रों की लोक में प्रशंसा होती है उसी प्रकार यथार्थ-सूक्ष्म बुद्धिमता चतर मंत्री की भी राजा द्वारा प्रशंसा होती है । मन्त्री को मन्त्रशास्त्र का ज्ञाता होना चाहिए Inoo|| |: मंत्र सलाह के आयोग्य कौन ? शस्त्राधिकारिणो न मन्त्राधिकारिणः स्युः 101 ।। ___ अन्वयार्थ :- (शस्त्राधिकारिणः) शस्त्र संचालन चतुर वीर (मन्त्राधिकारिणः) साचिव्य करने योग्य (न) नहीं (स्युः) होते हैं ।। जो सुभट क्षत्रिय वीर पुरुष शस्त्र संचालन कला में निपुण हैं वे राजा को मंत्रणा देना सलाह-विमर्श आदि करने के पात्र नहीं होते । विशेषार्थ :- जो व्यक्ति जिस क्षेत्र का अधिकार ज्ञाता है वह उसी सम्बन्धी कार्य में सफल होता है । अत: क्षत्रिय पुत्र रणभूमि का अधिकारी है उसे राजा का मंत्री बनना योग्य नहीं । जैमिनि विद्वान ने भी लिखा है : मन्त्रस्थाने न कर्त्तव्याः क्षत्रियाः पृथिवी भुजा यतस्ते के वलं मन्त्रं प्रपश्यन्ति रणोद्भवम् ॥ 271
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy