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नीति वाक्यामृतम्।
सुख के सब लोग संगाती हैं दुःख में कोई काम न आता है ।
जो सम्पत्ति में आ प्यार करें वे विपत्ति में आंख दिखाते हैं । मंत्रणा करने का अधिकार किसे है ? :
श्राद्ध इवाश्रोत्रियस्य न मन्त्रे मूर्खस्याधिकारोऽस्ति ॥8॥ अर्थ :- (आश्रोत्रियस्य) मूर्ख, अज्ञानी का (श्राद्धः) श्राद्ध कराने का (इव) समान, (सूर्खस्य) मूर्ख का (मन्त्रे) मंत्रगा करने में (अधिकारः) अधिकार (न) नहीं (अस्ति) है ।
धार्मिक क्रियाकाण्ड में अनभिज्ञ व्यक्ति को श्राद्ध-पिण्डदानादि कराने का जिस प्रकार अधिकार नहीं है । उसी प्रकार अविवेकी, मूर्ख पुरुष को साचिव्य-मन्त्रणा करने का अधिकार नहीं है । क्योंकि राजनीति में अनभिज्ञ क्या सलाह देगा ? कुछ नहीं । मूर्खमंत्री का दोष :
किं नामान्धः पश्येत् ॥90॥ अन्वयार्थ :- (किं नाम) कोई (अन्धः) नेत्रहीन (पश्येत्) देखता है ? नहीं ।
क्या अन्धा मनुष्य कुछ देख सकता है ? नहीं देख सकता । इसी प्रकार मूर्ख-अज्ञानी मन्त्री भी मन्त्र का निश्चय नहीं कर सकता । शौनिक विद्वान ने कहा है :
यद्यन्धो वीक्ष्यते किं चिद् घटं वा पटमेव च ।
तदा मूखोऽपि यो मंत्री मंत्रं पश्येत् सभूभृताम् ॥1॥ अर्थ :- यदि नेत्रविहीन पुरुष घट-पटादि वस्तुओं को देख सकता है तो मूर्ख मंत्री राजाओं को मन्त्रणा देना जान सकता है ।। मूर्ख राजा और मूर्ख मंत्री से हानि :
किमन्धेनाकृष्यमाणोऽन्धः समं पत्थानं प्रतिपद्यते ॥1॥ अन्वयार्थ :- (किम्) क्या (अन्धेन) नेत्रहीन द्वारा (आकृष्यमाण:) खींच कर लाने पर (अन्ध:) आँख रहित पुरुष (समं) समतलभूमि के (पन्थानम्) मार्ग को (प्रतिपद्यते) समझ सकता है ? नहीं ।
एक अन्धा पुरुष किसी अन्धे को लेकर मार्ग तय करना चाहे तो क्या वह ऊँचे-नीचे मार्ग से बचकर समतल भूमि का निरीक्षण कर सकता है ? नहीं देख सकता । इसी प्रकार मूर्ख मंत्री की सहायता से राजा सन्धि विग्रहादि विषयों में क्या मन्त्रणा कर सफलता पाने में सफल हो सकता है ? अर्थलाभ कर सकता है ? नहीं कर सकता । शक विद्वान ने कहा है :
अन्धेनाकव्यमाणोऽत्र चेदन्धो मार्गवीक्षकः । भवेत्तन्मूर्खभूपोऽपि मंत्रं चेत्यज्ञ मंत्रिणः ॥
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