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नीति वाक्यामृतम्
विशेष :- जिस प्रकार फरटाइल भूमि में बोया गया धान्य प्रचुर धान्यराशि में फलित होता है, उसी प्रकार । मत्री, अमात्य, पुरोहित और सेनापति आदि सहायक पुरुषों को दिया गया धन भी प्रचुर धन राशि को उत्पन्न करता है । अतएव विजीगीषु राजाओं को चाहिए कि सत्कार्यकर्ताओं की अपेक्षा धन संग्रह को महत्व नहीं दें ।86 ॥ कार्य पुरुषों का स्वरूप :
___ बुद्धावर्थे युद्धे च ये सहायास्ते कार्यपुरुषाः ।187॥ अन्वयार्थ :- (बुद्धौ) विवेक में (अर्थ) धन में (च) और (युद्धे) संग्राम में (ये) जो (सहायाः) सहायक होते हैं (ते) वे (कार्यपुरुषाः) कार्य पुरुष हैं ।
जो बुद्धि, धन और युद्ध में सहयोग देते हैं वे कार्यपुरुष हैं ।
विशेषार्थ :- राजनैतिक कार्यों में बुद्धिप्रदान करने वाले, सलाह देने वाले प्रधानमंत्री और पुरोहित आदि, सम्पत्ति में सहायक अर्थसचिव प्रभृति, और युद्ध में सहाय दाता सैनिक वीर योद्धा आदि इनको "कार्य पुरुष" कहते हैं । अन्यों को नहीं । शौनक विद्वान ने कहा है :
मोहे यच्छन्ति ये बुद्धिमर्थे कृच्छु तथा धनम् ॥ वैरिसंधे सहायत्वं ते कार्य पुरुषा मताः ॥1॥ सन्नरे योजितं कार्य धनं च शतध भवेत् ।
सुक्षेत्रे वापितं यद्वत् सस्यं तद्वदसंशयम् ॥ अर्थ :- जो राजा को संधि, विग्रहादि में सहाय देते हैं अर्थात् सलाह परामर्श देकर सन्मार्ग दर्शाते हैं, विपद् आने पर धन एवं शत्रुओं का सामना करने में सैनिक शक्ति प्रदान करते हैं उन मन्त्री, अर्थसचिव, सैनिकादि वीर सुभटों को "कार्यपुरुष" कहते हैं ।।87॥ किस समय कौन सहायक होता है? :
खादनवारायां को नाम न सहायाः ॥8॥ अन्वयार्थ :- (खादनवारायाम्) भोजन समय में (को नाम) कौन पुरुष (सहायाः) सहायक (न) नहीं होता? भोजन करने के अवसर पर कौन सहायक नहीं होता ? सभी सहायक होते हैं ।
विशेषार्थ :- सम्पत्ति के समय सभी सहायक हो जाते हैं । विपत्ति आने पर सब दूर भाग जाते हैं ! इसलिए विपत्ति आने के पूर्व ही श्रेष्ठ, श्रद्धावान सहायकों का संचय कर लेना चाहिए । वर्ग विद्वान ने कहा है
यदा स्यान्मन्दिरे लक्ष्मीस्तदान्योऽपि सुहद्भत् ।
वित्तक्षये तथा बन्धुस्तत्क्षणाद् दुर्जनायते ॥1॥ अर्थ :- जब गृह में श्री देवी-लक्ष्मी का निवास होता है तो साधारणजन भी प्रिय मित्र बन जाते हैं, धन ५ NA क्षय होने पर वे ही मित्र क्षणमात्र में पक्के दुर्जन-शत्रुसम हो जाते हैं । कहा भी है -
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