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________________ नीति वाक्यामृतम् अर्थ :- यदि एक अन्धा पुरुष अन्य अन्धे के द्वारा खींचा जाकर मार्ग में ले जावे, तथाऽपि वह अन्धा यदि सही रास्ते को देख सके, तब तो मूर्ख मंत्री भी मूर्ख राजा को राजकार्यों में परामर्श कर-सलाह देकर सन्मार्ग पर ला सफलता दिला सकता है । सारांश यह है कि उक्त दोनों ही कार्य असंभव हैं । इसी का दृष्टान्त देते हैं : तदन्धवर्तकीयंकाकतालीयं वा यन्मूर्ख मंत्रात् कार्य सिद्धिः ॥2॥ अन्वयार्थ :- (यत्) जो कभी (मूर्ख) अज्ञानी (मन्त्रात्) मंत्रणा से (कार्य) काम (सिद्धिः) सिद्ध हो जाय तो (नद) वह (अन्धवर्तकीयम्) अन्धे के हाथ में बटेर के समान (वा) अथवा (काकतालीयम्) काकतालीय न्याय के समान है। ___ यदा-कदा प्रसंगवश मूर्ख मंत्री की सलाह भी सफल हो जाती है, परन्तु यह नियामक नहीं है । विशेषार्थ :- बटेर एक प्रकार का पक्षी है । कोई नेत्र हीन व्यक्ति हाथ पसारता है और यह चिड़िया उसके हाथ में आगई यह "अन्धे के हाथ बटेर" न्याय के नाम से प्रसिद्ध है । इसी प्रकार कोई "काक आकाश में उड़ता .. जा रहा था, मध्य में ताल वृक्ष के नीचे से ऊपर की ओर मुंह करके निकल रहा था कि उसी क्षण तालफल गिरा और उसके मुख में गिर गया" इसे काकतालीय न्याय कहा जाता है । ये दोनों ही सिद्धान्त महान कठिन हैं, कदाच ही संभव हो सकते हैं, उसी प्रकार राजा का तीव्र पुण्योदय हुआ तो मूर्ख मन्त्री का साचिव्य-सलाह फलित होना संभवित हो सकता है । एक विद्वान गुरु ने भी लिखा है : अंधवर्तक मेवैतत् काकतालीयमेव च । यन्मूर्खमंत्रतः सिद्धिः कथंचिदपि जायते ॥ अर्थ :- अज्ञानी, राजनीति शास्त्र का अनभिज्ञ मूर्ख मंत्री की मंत्रणा किसी प्रकार जो कार्य सिद्धि करा देती है, उसे अन्धे के हाथ में "आई बटेर के न्याय"के एवं "काकतालीय न्याय" वत् समझना चाहिए । यह राजमार्ग नहीं । । सारंश यह है कि मूर्ख मन्त्री त्याज्य है । राजा को विवेकपूर्वक सुयोग्य पुरुषों को ही अपने सचिव मण्डल में भर्ती करना चाहिए 192॥ मूर्खमंत्रियों का मन्त्र ज्ञान : स घुणाक्षर न्यायो यन्मूर्खेषु मन्त्रपरिज्ञानम् ॥१३॥ अन्वयार्थ :- (यत्) जो (मुर्खेषु) मूर्ख-राजनीति से अनभिज्ञ में (मंत्रपरिज्ञानम्) मन्त्रणा करने का ज्ञान हो तो (सः) वह (धुणाक्षरन्यायः) उसे घुणाक्षर न्याय समझना चाहिए 1193 ।। । मूर्ख मनुष्य को मंत्रणा का ज्ञान घुणाक्षर न्याय सदृश कदाचित् हो जाता है, परन्तु निश्चित नहीं है ।। 267
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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