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-नीति वाक्यामृतम्
जिस राजा के सुयोग्य अनेक सचिव होते हैं, उनकी सहायता से उसके सभी यथेप्सित कार्यों को निर्विघ्न सिद्धि होती है ।
विशेषार्थ :- राज्य शासन संचालन के विभिन्न विभाग होते हैं । उनके संचालन को पृथक्-पृथक कर्मचारियों की नियुक्ति आवश्यक है । इस प्रकार अनेकों की नियुक्ति से प्रत्येक विभाग अपने-अपने कार्यों को अधिकारपूर्वक संचालन करेंगे और यशस्वी बनने की चेष्टा रखने से सफल होने के लिए प्रयाशील रहेंगे । वर्ग विद्वान ने भी कहा है:
मद हीनो यथा नागो दंष्ट्राहीनो यथोरगाः ।
असहायास्तथा राजा तत् कार्या वहवश्च ते 1॥ अर्थ :- जिस प्रकार मद हीन गज, दन्त विहीन नाग (सर्प) सुशोभित नहीं होता अर्थात् अपना कार्य करने में समर्थ नहीं होतें, उसी प्रकार सहायकों के अभाव में राजा भी शोभित नहीं होता । अपने कार्य में समर्थ नहीं होगा । अतः नृपति को योग्य-समर्थ विवेकी अनेक सहायकों की नियुक्ति करनी चाहिए 1 इससे राज्य-काज संचालन सुचारु रूप से चलेगा 80॥ केवल मंत्री के रखने से हानि :
एको हि पुरुषः केषु नाम कार्येष्वात्मानं विभजये ।।81॥ अन्वयार्थ :- (हि) निश्चय से ( एकः) अकेला (पुरुषः) पुरुष (नाम) कौन (कार्येषु) अनेक कार्यों में (आत्मानम्) अपने को (विभजते) बांट सकता है 181|| नहीं विभागित कर सकता है ।।
एक व्यक्ति अनेक विभागों के भिन्न-भिन्न विषय सम्बन्धी कार्यों को निष्पन्न नहीं कर सकता है ।
विशेषार्थ :- राजकीय अनेक कार्य होते हैं उन्हें अकेला मंत्री किस प्रकार कर सकता है ? कितना चतुर हो तो भी नहीं कर सकता । अतएव अलग-अलग कार्यों के सिद्ध करने को पृथक्-पृथक् व्यक्ति होना अनिवार्य है । जैमिनि ने भी लिखा है :
एकं यः कुरुते राजा मन्त्रिणं मन्दबुद्धितः ।
तस्य भूरीणि कार्याणि सीदन्ति च तदाश्रयात् ।।1॥ अर्थ :- जो मन्द बुद्धि भूपति सर्व राज कार्यों के सम्पादनार्थ एक ही मन्त्री को नियुक्त करता है उसके अनेकों कार्य व्यर्थ ही नष्ट हो जाते हैं । अर्थात् बिना देख-भाल के कारण व्यर्थ ही विफल हो जाते हैं । अतः राजा का कर्तव्य है हर एक विभाग के निरीक्षणार्थ अलग-अलग योग्य व्यक्तियों की नियक्ति करे |811 उक्त बात के समर्थन में दृष्टान्त :
किमेक शाखास्य शाखिनो महती भवतिच्छाया ।।82॥ अन्वयार्थ :- (किम्) क्या (एक) एक (शाखास्य) शाखा वाले वृक्ष (शाखिनो) वृक्ष की ( महती) सघन । (च्छाया) छाया (भवति) होती है ? नहीं ।
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