________________
नीति वाक्यामृतम्
विशेषार्थ :- पाँचवें सूत्र में मन्त्रि के जिन द्विज, स्वदेशी, सदाचारी कुलीन और व्यसनविरक्त आदि दोषी न हों तो एक या दो मंत्रियों की नियुक्ति भी दूषित नहीं है । यहाँ आचार्य क्वालिटी पर जोर दे रहे हैं । क्वाण्टिटी पर नहीं । सॉलिड, ठोस वस्तुएँ ही निःसन्देह कार्य साधक हुआ करती हैं ।। बहुत से मूर्ख मन्त्रियों का निषेध :
न हि महानप्यंध समुदायो रुपमुपलभेत् ।।78 ।। __ अन्वयार्थ :- (हि) निश्चय से (महान्) बहुत से (अपि) भी (अंधसमुदाय:) अन्धों का समुदाय (रुपम्) रंग को (न) नहीं (लभेत्) प्राप्त कर सकता है ।
कितनी ही नेत्रविहीन लोगों की संख्या क्यों न हो वह रुप का परिज्ञान नहीं कर सकती । सारांश यह है कि जिस प्रकार अनेकों अन्धे नेत्रविहीनों का समुदाय हरित, पीतादि रूपों का ज्ञान नहीं कर सकता है उसी प्रकार अनेकों मूर्ख, राजनीतिज्ञान शून्य सचिव भी राज्यशासन व्यवस्था को व्यवस्थित नहीं रख सकते । राज्य वृद्धि, अप्राप्य राज्य की प्राप्ति आदि गुणों को वे प्रसारित नहीं कर सकते । अत: मन्त्रिमण्डल में अधिक संख्या अपेक्षित नहीं है अपितु उनका गुणज्ञ होना अनिवार्य है। दो मन्त्रियों से लाभ का दृष्टान्त :
अवार्यवीर्यो धुर्यों किन महति भारे नियुज्यते ।।79॥
पाठान्तर :"अवार्यवीरों द्वौ धु? किं महति भारे न नियुज्यते" यह व्याकरणानुसार है ।
अन्वयार्थ :- ( अवार्यवीर्यो) वलिष्ठ शक्तिवान् (धुर्यों) बैल (किम्) क्या (महति) अधिक बोझ-भार (भारे) वजन में (न) नहीं (नियुज्येते) नियुक्त नहीं होते ? होते ही हैं ।
यदि बलवान दो वृषभ हैं तो क्या वे अधिक भार भरी गाडी में नहीं जोते जाते ? जोते ही जाते हैं । वे भार वहन भी करते हैं ।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार उत्तम वलिष्ठ बैल दो ही मिलकर बहुत बड़ी भारी गाड़ी को सरलता से वहन कर लेते हैं उसी प्रकार राजनीति शास्त्र के वेत्ता दो ही योग्य, विवेकी मन्त्री राजसत्ता को सुदृढ़ बना कर सुचारु रूप में संचालन, संवर्द्धन करा सकते हैं । अतः पूर्वोक्त गुण युक्त दो ही मंत्रियों के रखने में कोई क्षति नहीं है 1791 बहुत से सहायकों से लाभ :
बहु सहाय्ये राशि प्रसीदन्ति सर्व एव मनोरथाः |180॥ अन्वयार्थ :- (राज्ञि) राजा के (बहु) बहुत से (सहाये) सहकारी होने पर (सर्व) समस्त (एव) ही (मनोरथाः) मनोकामनाएँ (प्रसीदन्ति) फलित होती हैं ।
।।
261