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________________ नीति वाक्यामृतम् ----- - --- - जिस कार्य से सम्पत्ति, यश लाभ हो और अनेक गुणों की वृद्धि हो तथा विघ्नों का नाश हो, नित्य कल्याण उपलब्ध हो, उन्हीं कार्यों को करना चाहिए । विशेषार्थ :- विद्वान मनुष्य व उत्तम राजनीति वेत्ता राजा को चाहिए कि वह विघ्ननाशक, सम्पत्ति दायक, यशविकासक कार्यों का ही सम्पादन करें । विघ्नोत्पादक क्रियाएँ न करें । जैमिनि विद्वान भी कहते हैं कि : यद्यच्छे ष्ठ तरं कृत्यं तत्तत्कायं महीभुजा । नोपघातो भवेद्यत्र राज्यं विपुलमिच्छता ।।1॥ अर्थ :- महान राज्य के इच्छुक भूपति को जो-जो कार्य अधिकतर श्रेष्ठ और विनाशरहित, कल्याणवर्द्धक हों उन्हें ही करना चाहिए ।। भावार्थ यह है कि राजा को राज्य, कोष, सेना की वृद्धि के साथ यश का विस्तार करने वाले कार्य करना चाहिए 11751 मनुष्य का कर्त्तव्य : तदेव भुज्यते यदेव परिणमति ।।76॥ अन्वयार्थ :- ( तद्) वह (एव) ही (भुज्यते) भोजन करना (यत्) जो (ही) (एव) ही (परिणमति) पचन रूप परिणमता है । अपनी पाचन शक्ति के अनुसार ही भोजन करना चाहिए ।। विशेषार्थ :- नैतिकाचार विशिष्ट मनुष्य को पचने वाले-निरंतर विशुद्ध, पुण्य, यशस्य और न्याय युक्त एवं कल्याणकारी कार्यों को करना चाहिए । सत् कार्य करने वाला निर्भय व स्वतन्त्र रहता है । उसे नहीं पचने वाले अर्थात् समाज दण्ड, राजदण्ड द्वारा अपकीर्ति विस्तीर्ण करने वाले असत्कार्य-अन्यायकारी, कार्यों से निरन्तर दूर रहना चाहिए । इसी प्रकार राजा को भी अपने राज्य की सम्पदा व वृद्धि के उपाय भूत कार्य करना चाहिए । अपने राज्य की श्रीवृद्धि में सन्धि विग्रह आदि उपयोगी कारणों में संलग्न रहना चाहिए !। भविष्य में राज्य, राजा क्षति के कारणों से सतत् दूर रहना चाहिए ।।76 ।। कैसे मंत्रियों से हानि नहीं : ___ यथोक्तगुण समयायिन्येकस्मिन् युगले वा मंत्रिणि न कोऽपि दोषः ।।7॥ अन्वयार्थ :- (यथोक्तगुण) उपर्युक्तगुण (समवायिनि) समन्वित हों तो (एकस्मिन्) एक (युगले) युगल में-दो मंत्रियों (वा) अथवा (मंत्रिणि) मन्त्रियों में मंत्रणा करे तो (कोऽपि) कोई भी (दोषः) अपराध (न) नहीं [ अस्ति ] है 117781 अपने सचिवत्व के सम्पूर्ण गुणों से समन्वित हों तो एक या दो मंत्रियों की नियुक्ति भी उत्तम कार्य कारी होती है । 260
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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