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नीति वाक्यामृतम्
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जिस वृक्ष में मात्र एक ही शाखा-डाली है क्या उसकी सघन विस्तृतन्छाया हो सकती है ? कदा नहीं हो सकती। ऋषि विद्वान ने भी लिखा है :
यथै क शाखावृक्षस्य नैवच्छाया प्रजायते ।
तर्थक मंत्रिणा राज्ञः सिद्धिः कृत्येषु नो भवेत् ।।1।। अर्थ : जिस प्रकार एक ही शाखा वाले वृक्ष की विस्तृत व सघनच्छाया नहीं होती उसी प्रकार एक मंत्री मेरा पर राम के विस्तृत राय कायों की सुरक्षा नहीं हो सकती । अतः अपने राज्य के कार्यों का सुचारु रूप से संचालन व रक्षण करने के लिए राजा को हर एक क्षेत्र में उस उस विषय के ज्ञाता सानतादि बहाल करना योग्य है तभी कार्य गुचारु संचालित होंग 1182 || आपत्ति काल में सहायकों की दुर्लभता :
कार्य काले दुर्लभ: पुरुषसमुदायः ।।83 ।। अन्वयार्थ :- ( कार्यकाले) काम करने के समय पर ( पुरुषसमुदायः) अनेक पुरुषों का प्राप्त होना (दुर्लभः) कठिन है ।
एकाएक कार्य उपस्थित होने पर उसे करने वालों का अन्वेषण करना व्यर्थ है क्योंकि समग योग व्याको का मिलना दुर्लभ होता है ।
राजनीति प्रतिष्ठ नीतिकारों ने धन वैभव की अपेक्षा योग जनसंग्रह को विशष महल दिया है । इसी कारण विजोगीषु राजा लोग भावी शत्रुओं से सुरक्षार्थ, राष्ट्र, राज्य, रक्षार्थ विशाल मेना संगठन करने में प्रचुर धनगशि व्या की ओर दृष्टि नहीं देते । किसी विद्वान नीतिकार ने कहा है :. विवेकी पुरुषों को अपत्ति से रक्षा पाने के लिए :.
अग्रे अग्रे प्रकर्तव्याः सहायाः सुविवेकिभिः । आपन्नाशाय ते यस्माद् दुर्लभाव्यसने स्थिते ।।1।।
अर्थ :- आपत्ति आने के पूर्व ही विवेकी पुरुषों को अपने सहायकों को व्यवस्थित कर लेना चाहिए । क्योंकि पूर्व सन्नद्ध सैनिक सचिवादि ही आगत विपत्तियों को निवारण करने में समर्थ होते हैं । संकट आने पर उनके निवारकों का मिलना दुर्लभ है । सहायकों का संग्रह न करने से हानि :
दीप्ते गृहे कीदृशं कृपखननम् ।।847 अन्वयार्थ :- (गृहे) घर के (दीसे) जलने पर (कूपखननम) कुआ खादना (कीदृशम्) कैसा ? क्या?
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