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________________ -नीति वाक्यामृतम् । अर्थ :- राजा के समस्त सेवक कर्मचारी समूह मन्त्रियों के आधीन रहते हैं, उनकी सम्मति से प्रवर्तन करते हैं । अत: राजा के विरोधी मंत्री उनकी सहायता लेकर राजा को समास कर देते हैं मार डालते हैं 1700 राजा को कितने मंत्री रखना चाहिए ? : त्रयः पञ्च सप्त वा मन्त्रिणस्तैः कार्याः ।171 ।। अन्वयार्थ :- (तैः) राजाओं द्वारा (त्रयः) तीन (पञ्च) पाँच (वा) अथवा (सप्त) सात (मन्त्रिणः) संविच (कार्या:) नियुक्त करना चाहिए । भूपाल को तीन, पाँच या सात व्यक्तियों का मन्त्रिमण्डल बनाना चाहिए ।। विशेषार्थ :- विषम संख्या वाले मन्त्रियों का मण्डल बनाना चाहिए । अर्थात् पाँच, तीन, सात, नव आदि। इससे मन्त्रियों का एक मत होना कठिन है । विषम संख्या वाले परस्पर एक मत नहीं हो सकते हैं । अत: वे राज्य के विरुद्ध षड्यन्त्र भी उत्पन्न नहीं कर सकते 1171|| परस्पर ईर्ष्या करने वाले मन्त्रियों से हानि : विषमपुरुषसमूहे दुर्लभमैकमत्यम् 1172 ।। अन्वयार्थ :- (विषम) विषम संख्या वाले (पुरुष) मानव (समूह) समुदाय में (ऐक्य) एक समान (मत्यम्) मत होना (दुर्लभम्) कठिन है 1172 || दूसरा अर्थ :- (विषम) तीन, पांच आदि संख्या वाले (पुरुषा:) सचिव (समूहे) समुदाय में (ऐक्यम्) एकता (मत्यम्) मतैक्य (दुर्लभम्) दुर्लभ है । विषय संख्या वाले पुरुषों में मतैक्य एक प्रकार की विचारधारा नहीं हो सकती । परन्तु यहाँ यह अर्थ उचित नहीं. अपितु प्रथम अर्थ कि विषम संख्या में सचिव नियुक्त होने पर वे षडयन्त्र रचने को एक मत नहीं हो सकते। यही सुटेबुल प्रतीत होता है प्राकर्णिक 71 सूत्र के अनुसार यही फलित होता है । राजपत्र विद्वान ने भी लिखा। मिथः संस्पर्धमानानां नैकं संजायते मतम् । स्पर्धा हीना ततः कार्या मंत्रिणः पृथिवी भुजा ॥ अर्थ :- परस्पर ईर्ष्या करने वालों की किसी भी कार्य में एक सम्मति नहीं होती । अतः राजा को परस्पर स्पर्धा ईर्ष्या नहीं करने वाले, पारस्परिक प्रेम सूत्र में बंधन में बंधकर रहने वाले, व एक दूसरे को सहानुभूति प्रदान करने वालों को ही मन्त्रिपद पर नियुक्त करना चाहिए 1172 || बहुत मंत्रियों से होने वाली हानि : वहवो मंत्रिणः परस्परं स्वमतीरुत्कर्षयन्ति ।।73 || पाठान्तर : वहवो मंत्रिणः परस्परमतिभिरुत्कर्षयन्ति ।।73 ।। .258
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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