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नाति वाक्यामृतम्।
N'को एक ही मन्त्री नहीं रखना चाहिए 166,67॥ विद्वान नारद ने भी कहा है :
एको मंत्री कृतो राज्ञा स्वच्छ या प्रवर्तते ।
न करोति भयं राज्ञः कृत्येषु परिमुह्यते ॥ अर्थ :- पृथिवीनाथ द्वारा नियुक्त किया गया एक ही मंत्री-एकाकी स्वेच्छानुसार कार्यों में प्रवृत्ति करेगा। उसे राजा से भय नहीं रहता । तथा कठिन कार्य करने का निश्चय भी नहीं कर सकता ॥ दो मन्त्रियों से हानि :
द्वावपि मंत्रिणी न कार्यों 11681
मगि संवतौ राज्यं विनाशयतः ।।१॥ अन्वयार्थ :- (द्वौ) दो (अपि) भी (मंत्रिणौ) मंत्रियों को (न) नहीं (कार्यो) बनाना चाहिए । क्योंकि (द्वौ) दोनों (मंत्रिणा) मन्त्री (संहतो) मिलकर (राज्यम्) राज्य को (विनाशयतः) नष्ट कर देते हैं ।
दो ही मंत्री रहने पर एक दूसरे से मिलकर राज्य को नष्ट कर देते हैं । क्योंकि दोनों गुटबन्दी कर लेते
विशेषार्थ :- केवल दो ही मंत्री रहेंगे तो दोनों मिलकर सदाचार करके राज्य- राष्ट्र की हित चिन्तना नहीं कर सकते। अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहेंगे 1168,691 नारद विद्वान ने लिखा है :
मंत्रिणां द्वितयं चेत् स्यात् कथंचित् पृथिवीपतेः ।
अन्योन्यं मंत्रयित्वा तु कुरुते विभवक्षयम् ।।1।। अर्थ :- राजा अपने सलाहकार यदि दो ही मंत्रियों को रखता है तो वे परस्पर में मिलकर सलाह करके उसके कोष को खोखला कर देंगे । सेनादि वैभव को भी विनष्ट कर देंगे । अतएव राजा को दो ही मन्त्री नहीं। बनाना चाहिए । दो मन्त्रियों से होने वाली क्षति :
निगृहीतौ तौ तं विनाशयतः 10॥ अन्वयार्थ :- (निगृहीतौ) दोनों मंत्रियों का निग्रह करने पर वे (तो) दोनों मिलकर (तम्) उस राजा को (विनाशयतः) नष्ट कर देते हैं - मार देते हैं ।
"अर्थो मूलमनानाम्" लोकोक्ति है । धन समस्त अनर्थों की जड है । दो मंत्री परस्पर एका कर राजा को ही समाप्त कर देते हैं । गुरु विद्वान ने भी लिखा है :
भूपतेः सेवका ये स्युस्तेस्युः सचिवसम्मताः । तैस्तैः सहायतां नीतैर्हन्युस्तं प्राणयोद्भयात् ।।
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