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नीति वाक्यामृतम्
वणिक् व्यापार कर सकता है । हथियार चलाना क्या जाने ? जो जिस विषय का ज्ञाता नहीं वह उसमें सफल कैसे होगा ? नहीं हो सकता । इस प्रकार पराक्रम रहित राजा भी राज्य संचालन में सफल नहीं हो सकता ।।
_ विशेषार्थ :- शस्त्रास्त्र चलाने में दक्षता प्राप्त नहीं करने वाला राजा का संग्राम करना, व्यापारी के शस्त्र संचालन के समान है । प्रहार क्रिया में अकशल-ज्ञान शन्य श्रेष्ठी का खडग रखना व्यर्थ है उसी प्रकार पराक्रम शन्य राजा का राज्य भी व्यर्थ है क्योंकि पराक्रमियों के द्वारा नियम से परास्त कर दिया जायेगा । भारद्वाज विद्वान ने इस विषय में कहा है :
परेषां जायते साध्यो यो राजा विक्र मच्युतः ।
न तेन सिद्धयते किंचिदसिना श्रेष्ठिनो यथा ॥ अर्थ :- पराक्रम विहीन राजा को कोई भी सन्धि-विग्रह सम्बन्धी कार्य सेठ के खड्ग-तलवार आदि के समान व्यर्थ है । क्योंकि वह शत्रुओं द्वारा परास्त कर दिया जाता है ।
सारांश यह है कि राजा को पराक्रमी होना चाहिए ।।60॥ नीति या सदाचार प्रवृत्ति से लाभ :
नीतिर्यधावस्थितमर्थमुपलम्भयति ॥61॥ अन्वयार्थ :- (नीतिः) सदाचार (यथावस्थितम्) यथार्थ अर्थ तत्व की (उपलम्भयति) उपलब्धि कराती है। नीति वह है जो पदार्थ का यथार्थ ज्ञान करावे ।।
विशेषार्थ :- नीति शास्त्र का ज्ञान मनुष्यों को वस्तु तत्व का परिज्ञान कराने में पूर्ण सक्षम होता है । गर्ग विद्वान ने भी कहा है :
मातापि विकृतिं याति नैव नीतिः स्वनुष्ठिता ।
अनीतिर्भक्षयेन्मर्त्य किं पाकमिव भक्षितम् ।। अर्थ :- माता भी मनुष्य का अहित-दुःख देने वाली वस्तुओं को उपस्थित कर सकती है परन्तु सुयोग्य नीति मानव का अहित कदापि नहीं कर सकती । अनीति-दुराचार किंपाकफल-विषफल के समान मनुष्यों को भयंकर कष्ट देती है ।
भावार्थ यह है कि सनीति सतत् कल्याण करने वाली होती है । दुर्नीति निरन्तर कष्ट देती है । अतः सदैव सदाचार पालन करना चाहिए ।।61 ॥ हित प्राप्ति और अहित त्याग का उपाय :
हिताहितप्राप्तिपरिहारौ पुरुषकारायत्तौ ।।62।। अन्वयार्थ :- (हितम्) कल्याण (अहितम्) अकल्याण (प्राप्तिः) प्राप्त करना (परिहारः) त्याग करना । NP(पुरुषाकार:) पुरुषार्थ से (आयत्तौ) सिद्ध होती हैं ।62 ।।
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