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नीति वाक्यामृतम्
कल्याण की प्राप्ति और अकल्याण का परिहार पुरुष के पुरुषार्थ से ही प्राप्त होती हैं ।
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विशेषार्थ सुख शान्ति प्रदाता एवं दुःख और अशान्ति देने वाली वस्तुओं की प्राप्ति व अप्राप्ति दोनों ही पुरुषार्थ के आश्रित हैं ।
सारांश यह है कि जीवनोत्थान एवं सुखोत्पादक वस्तुओं का पाना कठिन होने पर भी नीतिवान सत्पुरुष अपने पुरुषार्थ से उन्हें आसानी से पा लेता है । इसी प्रकार अवनति कारक कारणों का परिहार भी वह सरलता से करने में समर्थ हो जाता है । दुःखों के नाश करने की शक्ति जितेन्द्रियता है । नीतिज्ञ पुरुष जितेन्द्रिय होता है । अतः उसे स्वयं सामर्थ्य उपलब्ध हो जाती है ।
वादरायण ने भी लिखा है :
हितं वाप्यथवानिष्टं दुर्लभं सुलभं च वा I आत्मशक्तयाप्नयान्मर्त्यो हितं चैव सुलाभदम् ॥
अर्थ :- उद्योगी पुरुष दुर्लभ होने पर भी लाभदायक वस्तु को युक्तिपूर्वक प्राप्त कर लेता है । एवं अहितकारक सुलभ होने पर भी त्याग देता है । तथा लाभदायक, हितकारक कार्य में ही प्रवृत्ति करता है । अतः सम्यक् पुरुषार्थ करना चाहिए | 162 | मनुष्य का कर्त्तव्य
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अकालसहं कार्यमद्यस्वीनं न कुर्यात् |163॥
अन्वयार्थ :- ( अद्यस्वीनम् ) आज ही करने योग्य (कार्यम्) कार्य को ( अकालसहम् ) विलम्ब (न) नहीं (कुर्यात्) करे 1163॥ पाठान्तर - 'अकालसहं कार्यं यशस्वी विलम्बेन न कुर्यात् " यह पाठ विशेष अच्छा है, इसका अर्थ है "कीर्ति की कामना रखने वाले मनुष्य को शीघ्र करने योग्य कार्य विलम्ब से नहीं करना चाहिए || चारायण विद्वान ने भी लिखा है: :
यस्य तस्य हि कार्यस्य सफलस्य विशेषतः ।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिवति तत्फलम् ॥7॥
अर्थ :- विशेष सफलता करने वाले कार्य को यदि शीघ्र न किया जावे तो समय काल उसके फल को पी जाता है । अर्थात् विलम्ब करने से कार्य सिद्ध नहीं होता ।
समय चूकने पर कार्य का दोष :
कालातिक्रमान्नखच्छेद्यमपि कार्यं भवति कुठारच्छेद्यम् 1164 ॥
अन्वयार्थ :
(काल) समय (अतिक्रमात् ) उल्लंघन होने से (नखच्छेद्यम्) नाखून से काटने वाला (अपि) भी (कार्यम्) कार्य (कुठारच्छेद्यम्) कुल्हाड़ी से काटने योग्य (भवति) हो जाता है ।
प्रत्येक कार्य समयानुसार करना चाहिए । समय चूकने पर लघु कार्य भी अति भारी हो जाता है ।
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