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नीति वाक्यामृतम्
श्रमग्लानि को दूर करने के लिए नींद लेना निद्रा है । परन्तु प्रगाढ़ नींद लेना या नींद पर नींद लेना यही यातक है 1141॥
उपर्युक्त ये पाँच बातें गुप्त मन्त्र का भेदन करती हैं ।
सारांश यह है कि गुप्त मन्त्रणा करते समय राजा या मंत्री आदि आङ्गोपाङ्ग से इशारा करेंगे तो हाव-भाव से उसका अभिप्राय अवगत हो जाता है, इसी प्रकार क्रोध से रौद्र परिणाम, हर्ष से सौम्याकृति देखकर गुप्तचर विग्रह व सन्धि को ज्ञात कर सकते हैं । इसी प्रकार शराब आदि पीना, प्रमाद करना, निद्रा लेना ये भी गुप्त भेद प्रकाशन के हेतू हैं । अर्थात् प्रगाढ़ नशे में, असावधानी व गहरी निद्रा में रहस्योद्धाटक शब्दोच्चारण कर सकता है । अत: उपर्युक्त पाँचों बातों का परिहार करना चाहिए 141 ॥ वशिष्ट विद्वान ने भी कहा है कि :
मंत्रयित्वा महीपेन कर्त्तव्यं शुभचेष्टितम् ।
आकारश्च शुभः कार्यत्याच्या निद्रामदालसः ।। अर्थ :- नृप को गुप्त मन्त्रणा करने के समय अपने मुख की आकृति सौम्य और शरीर आकृति को सरलस्वाभाविक रखनी चाहिए । तथा निद्रा, मद और आलस्य का परित्याग कर देना चाहिए । अन्यथा भेद-रहस्य छिपा नहीं रह सकेगा 141॥ निश्चित विचार को शीघ्र कार्यान्वित करना चाहिए :
उद्धत मन्त्रो न दीर्घसूत्रः स्यात् ।।42॥ अन्वयार्थ :- (उद्धृत) निश्चित किया (मन्त्रः) गुप्त मंत्रणा (दीर्घ सूत्रः न स्यात्) अधिक समय तक नहीं रोकना चाहिए ।
जो मन्त्रणा निर्धारित हो उसे अतिशीघ्र कार्यरूप में परिणत कर डालना चाहिए । क्योंकि विलम्ब करने से मंत्रभेद खुलने का भय रहना है । विशेषार्थ :- कौटिल्य ने भी कहा है :
"अवाप्तार्थ: कालं नातिक्रमेत"कौ. अ. शास्त्र सूत्र 50. मंत्राधिकार अर्थात - प्रयोजन को निश्चित कर उसे शीघ्रतिशीघ्र ही कार्य रूप परिणत कर देना चाहिए । समय को व्यर्थ गंवाना उचित नहीं है ।। शुक्र कहते
यो मन्त्रं मन्त्रयित्वा तु नानुष्ठानं करोति च ।
तत्क्षणात्तस्य मंत्रस्य, जायते नात्र संशयः ।।1॥ अर्थ :- जो पुरुष, नृपति या अन्य कोई विचार निश्चित कर उसे उसी समय कार्यान्वित नहीं करता - आचरण में नहीं लाता, उसे मंत्र का फल - (कार्यसिद्धि) प्राप्त नहीं होता 142 निश्चित विचार के अनुसार कार्य न करने से हानि :
अननुष्ठाने छात्रवत् किं मन्त्रेण ।।43 ॥
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