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________________ नीति वाक्यामृतम् N) रौद्र व सौम्य आकृति को (आकारः) आकार [कथ्यते] कहा जाता है ।। रूष्ट होने से चेहरे आदि पर भयंकर, और किसी के प्रति अनुग्रह करने या हर्ष से जो आनन्द रूप प्रसन्नता दृष्टिगत होती है उसे "आकार" कहते हैं ।B7॥ 3. मद : पानस्वी संगादि जनितो हर्षो मद : ।।38 ।। अन्वयार्थ :- (पान) मद्यपान (स्त्री संगादि) स्त्री संभोग आदि से (जनितः) उत्पन्न (हर्षः) प्रसन्नता को (मदः) मद कहते हैं । विषय भोगों से इन्द्रिय जन्य सुख मिलता है । इससे उत्पन्न प्रसाद-प्रसन्नता को आगम में 'मद' कहा जाता विशेषार्थ :- भोगी-संसारी प्राणी मानव मद्यादि कुव्यसनों में लम्पटी उनके सेवन हानि देखते हुए भी उन्हीं में रच-पच आनन्दानुभव करता है । इसी को यहाँ 'मद' संज्ञा नाम प्रदान किया है ।।38 ॥ 4. प्रमाद का स्वरूप : प्रमादो गोत्रस्खलनादि हेतुः ।।१।। अन्वयार्थ :- (गोत्रस्खलनादि) गोत्रगत नामादि को भूल जाने का (हेतुः) कारण (प्रमादः) प्रमाद कहलाता विशेषार्थ :- किसी का नाम भूल जाना । अन्यथा - अन्य का अन्य नामोच्चारण करना, असावधानी बर्तना । है । अपने अथवा पर के नाम को भल जाना अथवा अन्यथा प्रलाप करना इच्छित कार्य को त्याग अन्य काम करने लगना, जाप, पूजा भूल जाना - अर्थात् कार्यों में असावधानी वर्तन करना "प्रमाद" कहलाता है |B9॥ अन्यथा चिकिर्षतोऽन्यथा वृत्ति र्वा प्रमादः ।।40 ।। अन्वयार्थ :- (चिकिर्षतः) विचार किया (अन्यथा) अन्य प्रकार (वा) तथा (वृत्तिः) कार्य (अन्यथा) दूसरे प्रकार से करना (प्रमादः) प्रमाद है । किसी कार्य की योजना एक प्रकार से बनाई और उसका कार्य दूसरे प्रकार से करना यह भी प्रमाद है । यथा योजना बनाई श्री सम्मेद शिखर में विधान-पूजा करना है और सोनागिर में ही करने लगे । यह असावधानी या प्रमाद हुआ।140 || 5. निद्रा का लक्षण : निद्रान्तरितो [निद्रितः ] ।।41॥ अन्वयार्थ :- [निद्रित:] नींद लेने पर (निद्रान्तरितः) पुनः निद्रा लेकर सोने वाला । 243
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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