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नीति वाक्यामृतम्
अभिप्राय यह है कि मन्त्रणा करने के स्थान में पशु पक्षियों का संचार भी नहीं रहना चाहिए । नीरव, एकान्त, । शान्त स्थान में ही विवेकी पृथ्वीपतियों को गुप्त मन्त्रणा करना योग्य है ।।3।। मन्त्र प्रकाशित होने से कष्ट होता है :
मन्त्रभेदादुत्पन्नं व्यसनं दुष्प्रतिविधेयं स्थात् ।।34॥ अन्वयार्थ :- (मन्त्र) गुप्त सलाह (भेदात्) प्रकट होने से (उत्पन्नम्) उत्पन्न हुआ (व्यसनम्) कष्ट (दुष्प्रतिविधेयम) कठिन प्रतिकारी (स्यात्) होगा ।
रहस्य खुल जाने पर होने वाला कष्ट दुष्परिहार्य एवं तील कष्ट हायक होता है ।
विशेषार्थ :- पृथ्वीपति को अपने मन्त्र कार्य में विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है । क्योंकि मन्त्र भेद का क्लेश दुनिर होता है । गर्ग विद्वान ने भी कहा है :
मंत्र भेदाचा भूपस्य व्यसनं सम्पजायते ।
तत्कृच्छान्नाशमभ्येति कृच्छ्रेणाप्यथवा न वा ? 1॥ अर्थ :- मंत्र के खुल जाने पर राजा का कष्ट इतना कठिन होता है कि उसका निवारण कष्ट साध्य होता है अथवा अनेकों दुसाध्य उपायों से भी नष्ट नहीं होता ।
निष्कर्ष यह है कि विपत्ति आने के पूर्व ही उसको बांध देना चाहिए । "पानी पहले पार बांधना" कहावत के अनुसार सम्यक् विवेक पूर्वक मन्त्रणा का स्थानादि परिशोधन कर लेना अनिवार्य है 184 ।। जिन कारणों से गुप्त मन्त्रणा प्रकट होती है :
इङ्गितमाकारो मदः प्रमादो निद्रा च मंत्रभेदकारणानि ।।35॥ अन्वयार्थ :- (मंत्रभेदस्य) गुप्त मंत्र भेद के (कारणानि) कारण हैं - (इङ्गितम्) इशारा (आकारो) मुखादि की चेष्टा, (मदः) अहंकार (प्रमादः) आलस्य (च) और (निन्द्रा) नींद ।
गुप्त मन्त्र भेद के पाँच कारण हैं - 1. इङ्गित - मुखादि की चेष्टा 2. शरीर की रौद्र या सौम्य आकृति 3. शराब आदि पीना 4. प्रमाद असावधानी करना और 5. निद्रा बाहुल्य ||35 ।। 1. इङ्गित का लक्षण :
इङ्गितमन्यथावृत्तिः ।।36॥ अन्वयार्थ :- (अन्यथावृत्ति) नेत्रादि अंगों की स्वभाव से विपरीत चेष्टा (इङ्गितम्) इशारा [अस्ति] ।
गप्त अभिप्राय को प्रकट करने वाली शरीर की चेष्टा विशेष को इगित कहते हैं । अथवा स्वाभाविक क्रियाओं से भित्र क्रियाओं के सम्पादन का इङ्गित कहा जाता है 186॥ 2. आकार का लक्षण :
कोप प्रसाद जनिताशरीरी विकृतिराकाराः 187॥ अन्वयार्थ :- (कोपात्) क्रोध से (प्रसादात्) प्रसन्नता से (जनिता) उत्पन्न (शरीरी) शरीर की (विकृत्तिः ।
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