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नीति वाक्यामृतम्
जिनके बधु-बांधवों को वध-बन्धनादि द्वारा अपकार किया है उनके पारवारिक विरोधियों के साथ भी गुप्त मन्त्रणा-सलाह नहीं करनी चाहिए । क्योंकि उनके द्वारा भेद प्रकाशन का भय रहता है ।।
विशेषार्थ :- मनुष्य के अन्दर प्रतिशोध की प्रबल भावना होती है । उसके उभड़ने का समय निश्चित नहीं होता। अत: कभी भी विरोध कर गुप्त मन्त्र को प्रकाशित कर सकते हैं । शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
येषां वधादिकं कुर्यात् पार्थिवश्च विरोधिनाम् ।
तेषां सम्बन्धिभिः सार्द्ध मंत्र: कार्यों न कर्हिचित् ॥ अर्थ :- राजा को अपने विरोधी, जिनको वदन भगावि दण्ड दे चुका है, उनके साथ कभी भी गुप्त मन्त्रणासलाह परामर्श नहीं करना चाहिए । क्योंकि कहावत् है - "जल को और कुल को मिलने में देर नहीं लगती" दूसरी बात है "घोटूं पेट को ही नमते हैं ।।" अपने कुटुम्ब परिवार का ही पक्ष मानव स्वीकार करता है । अतः मनुष्य की सम्यक् परीक्षा कर अपने अनुकूल रहने वालों के साथ ही गुप्त सलाह करना श्रेष्ठ है 181 ॥ मन्त्र के समय न आने वाले व्यक्ति का स्वरूप :
अनायुक्तो मन्त्रकाले न तिष्ठेत् ।।32॥ अन्वयार्थ :- (अनायुक्तो) बिना बुलाया व्यक्ति (मन्त्रकाले) गुप्त मंत्रणा के समय (मन्त्रकाले) मंत्रणा के समय में (न तिष्ठेत्) नहीं रहे ।
नपति की आज्ञा बिना कोई भी व्यक्ति मन्त्रणा के समय उस स्थान के आस-पास व वहाँ पर नहीं रहे ।
विशेषार्थ :- पृथ्वी पति ने जिन-जिन सत्पुरुषों को आह्वान किया हो (बुलाया हो) वही-वही व्यक्ति राजा के पास मन्त्रणा करते समय रहें अन्य नहीं । राजा का अत्यन्त निकटवर्ती प्रिय मित्र भी वहाँ (गुस मंत्रणा काल में) पहुँच जाता है तो राजा उससे रुष्ट हो जाता है । शुक्र विद्वान ने इस विषय में कहा हैं :
यो राजा मन्त्र बेलायामनाहूतः प्रगच्छति ।
__ अति प्रसाद युक्तोऽपि विप्रियत्वं व्रानेद्धि सः ।।1।। अर्थ :- जो नृप की मन्त्र बेला में बिना बुलाये ही चला आता है जैसी कहावत् है "मान न मान मैं तेरा मेहमान" बन बैठता है वह अपनी मर्यादा को घटाता है । अर्थात प्रिय होने पर भी राज्यादि का कोप भाजन होता
मन्त्रणा को प्रकाशित करने वाले दृष्टान्तः--
तथा च श्रूयते शुकसारिकाभ्यामन्यैश्च तिर्यग्भिमन्त्रभेदः कृतः ।।33॥ अन्वयार्थ :- (तथा) उसी प्रकार (श्रूयते) सुना जाता है कि (शुक सारिकाभ्याम्) तोता, मैनादि द्वारा (च) और (अन्यैश्च) दूसरे भी (तिर्यग्भिः ) पशु आदि द्वारा (मन्त्रभेदः) गुप्त मन्त्र प्रकाशित (कृतः) किया गया।
मनुष्य की क्या बात पशु-पक्षी भी गुप्त मन्त्र को प्रकाशित करने वाले देखे जाते हैं 133 ॥
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