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________________ नीति वाक्यामृतम् प्रधानमन्त्री के सद्गुण वर्णन : ब्राह्मण क्षत्रियविशामेकतमं स्वदेशजमाचाराभिजन विशुद्धमव्यसनिनमव्यभिचारिणमधीताखिल व्यवहार तन्त्र मस्त्रज्ञमशेषोपाधि विशुद्धंच मन्त्रिणं कुर्वीत ।।5।। अन्वयार्थ :- (ब्राह्मण क्षत्रियविशाम्) विप्र, क्षत्रिय व वैश्यों में (एकतमम्) कोई एक (स्वदेशजम्) अपने देश में जन्मा (आचाराभिजनविशुद्धम्) कुलाचार विशुद्ध (अव्यसनिनम्) जुआदि सप्त व्यसन रहित, (अव्यभिचारिणम्) व्यभिचार-कुशील रहित (अखिलं) सम्पूर्ण (व्यवहारतन्त्रम्) व्यवहार पद्धति (अधीतम्) ज्ञाता (अस्त्रज्ञम्) शस्त्रविद्यानिपुण (च) और (अशेष) सम्पूर्ण (उपाधि विशुद्धम्) सम्पूर्ण शत्रु विद्याओं का पारंगत-स्वयं कपट विहीन (मन्त्रिणम्) मन्त्रि को (कुर्वीत) नियुक्त करे । राजा को तीनों उत्तम वर्णों से किसी एक वर्ण वाले राजनीति विद्या में निपुण, शुद्ध कुलीन, सदाचारी, व्यसनहीन, कर्मठ, राजभक्त पुरुष को अपना महाआमात्य-प्रधानमन्त्री नियुक्त करना चाहि', .॥ विशेषार्थ :- राजा का कर्तव्य है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वर्गों में से किसी एक वर्ण का मंत्री हो, शूद्र नहीं हो बनाना चाहिए, तथा अपने ही देश का निवासी हो, विदेशी न हो, सदाचारी हो-दुष्कर्मों से विहीन हो, पवित्राचरणी हो । जो कुलीन हो - जिसके माता और पिता का पक्षवंश विशुद्ध हो (जो कि विवाहित समान वर्ण वाले मातापिता से उत्पन्न हो), जुआ खेलना, शिकार करना-मद्यपान करना आदि सस व्यसनों का त्यागी हो, अपने स्वामी में श्रद्धायुक्त हो, व्यवहार विद्या में निपुण हो, शत्रु चेष्टा की परीक्षा में निपुण हो, जिसमें सम्पूर्ण व्यवहार शास्त्रों का अध्ययन किया हो-नीतीशास्त्रों का ज्ञाता हो, युद्ध विद्या के रहस्य का अध्येता हो, जो अन्य के छल-कपटों की पहिचान में तीक्ष्ण दृष्टि वाला हो, पर स्वयं निष्कपट व सरल हो इस प्रकार के सुयोग्य व्यक्ति को आमात्यप्रधान मन्त्री के पद पर नियुक्त करना चाहिए ।15 | आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने मंत्री के 5 गुण बतलाये हैं : कौलीन्य पौरूषं श्रेष्ठं स्वाध्यायो दृढ़निश्चयः । प्रजोत्कर्षाय सस्नेहचेष्टा मन्त्रिगुणा इमे ।।2।। कुरल काव्य मन्त्रि में पाँच गुणों का होना अनिवार्य है .. 1 कुलीन, 2. पौरुष, 3. उत्तमगहरी स्वाध्याय-तत्त्वज्ञता, 4. दृढ़ निश्चय और 5. प्रजा की भलाई के लिए सतत् सप्रेम चेष्टा । इन गुणों से सम्पन्न व्यक्ति सफल मन्त्री हो सकता अर्थात् राजा का प्रधानमन्त्री द्विज, स्वदेश निवासी, शिष्टाचारी, उत्तमकुलोत्पन्न, शुद्धवंशज, दुर्व्यसन विहीन, स्वामीभक्त, प्रजावत्सल, अस्त्र-शस्त्र विद्या निपुण, नीतिज्ञ, युद्ध विद्या विशारद, एवं निष्पकट होना चाहिए । इन नौ प्रकार के गुणों से विभूषित होना चाहिए । इस प्रकार के गुणाज्ञ मन्त्री के रहने से ही राज्य की चन्द्रवृद्धि वत् उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।।5॥ नव गुणों में "स्वदेशवासी" गुण का समर्थन :समस्त पक्षपातेषु स्वदेशपक्षपातो महान् ॥6॥ कुरल प.2.64. 223
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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