________________
नीति वाक्यामृतम्
.......
मन्त्रि-समुद्देशः श्रेष्ठ बुद्धियुक्त मन्त्री की सलाह मानने वाला राजा :
मंत्रि-पुरोहित-सेनापतीनां यो युक्तमुक्तं करोति स आहार्य बुद्धिः ।। 1॥ ___ अन्वयार्थ :- (य:) जो नृप (मंत्रिः) आमात्य (पुरोहितः) पण्डित (सेनापतिः) सेनानायक से (युक्तम्) युक्तियुक्त (उक्तम्) कथित (करोति) करता है (सः) वह (आहार्य) प्रशंसनीय (बुद्धिः) बुद्धिवाला [अस्ति]
जो राजा अपने सुयोग्य बुद्धिमान आमात्य, पुरोहित व सेनापति के युक्तमद परामर्श सलाह को मान्य करता है वह राजा कुशल-विवेक बुद्धि सर्वमान्य पूज्य हो जाता है ।
विशेषार्थ :- कुशल राजा को अपने राज्य की वृद्धि के लिए उपयुक्त तीनों कर्मचारियों के युक्तियुक्त वचनों को सुनकर तदनुसार कार्य करना चाहिए । गुरु विद्वान ने भी कहा है :
__ यो राजा मंत्रिपूर्वाणां न करोति हितं वचः ।
स शीघं नाशमायाति यथा दुर्योधनो नृपः ॥
अर्थ :- जो महीपति मन्त्रि, पुरोहित और सेनापति की उचित हितकारी परामर्श को नहीं सुनता या उसकी उपेक्षा करता है वह अति शीघ्र दर्योधन राजा की भाँति नाश को प्राप्त हो जाता है । प्रत्येक व
स हो जाता है । प्रत्येक कार्य की सिद्धि के सहकारी कारण होना आवश्यक है । मन्त्रि, पुरोहितादि राज्य शासन पद्धति के नीति पूर्वक संचालन के हेतू हैं अत: राजा को परिकर के अनुसार चलने से शासन व्यवस्था यथोचित-व्यवस्थित रहती है । उपर्युक्त आहार्य राजा का दृष्टान्त :
असुगन्धमपि सूत्रं कुसुमसंयोगात् किनारोहति देवशिरसि ? ।।2।। अन्सयार्थ :- (असुगन्धम्) सुरभिरहित (अपि) भी (सूत्रम्) धागा (किं) क्या (कुसुम संयोगात्) पुष्प की संगति से (देवशिरसि) देव के शिर पर (न) नहीं (आरोहति) चढ़ता है ? चढ़ता है ।
यद्यपि धागे में सुरभि नहीं होती, तो भी कुसुमों के साथ गूंथने पर माला बनाने पर माला के साथ वह भी 1 देवी देवता के शिर पर आसीन हो जाता है । उसी प्रकार मूर्ख व असहाय राजा भी योग्य आमात्य राजनीति विज्ञN
220