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________________ नीति वाक्यामृतम् d N शक्ति से अधिक बोझा लादने से, कठिन-पथरीले, पहाड़ी आदि कठोर लम्बे मार्ग की दूरी तय कराने से पशुओं का अकाल मरण होता है । विशेषार्थ :- मूक पशु वचन शक्ति का अभाव होने से आन्तरिक सुख-दुःख की अभिव्यक्ति करने में समर्थ नहीं होते । क्षुधा तृषा की बाधा को भी व्यक्त नहीं कर सकते । थक गये तो क्या श्रमित होकर-चुप बैठ सकते हैं ? नहीं । ये सभी कष्ट उन्हें विवश होकर भोगने होते हैं, फिर मरण हो जाय तो क्या आश्चर्य है ? बेचारों को असमय में ही मरण को वरण करना पड़ता है । हारीत विद्वान कहता है : अतिभारो महान् मार्गः पशूनां मृत्युकारणम् । तस्मादहभावेन मार्गेणापि प्रयोजयेत् ॥१॥ अर्थ :- पशुओं पर शक्ति से बाहर बोझा लादने और दीर्घ कठिन मार्ग पार कराने से उनका अकाल में मरण होने की संभावना है । मर जाते हैं । इसलिए उनके ऊपर उनकी योग्यता के अनुसार अल्प बोझा लादना चाहिए । तथा उन्हें अल्प समय तक ही कम दूरी तक ही चलाना चाहिए । जैनाचार्यों ने अहिंसाव्रत के अतिचारों में अतिभारारोपण अतिचार बताया है । अतः दयालु व्यक्ति को शक्ति के बाहर बोझा भार नहीं लादना चाहिए । अधिक तेज चाल में भी नहीं चलाना चाहिए । दूसरे देशों से माल आना क्यों बन्द होता है ? : शुल्क वृद्धि वलात् पण्यग्रहणं च देशान्तर भाण्डानामप्रवेशे हेतुः ॥1॥ अन्वयार्थ :- (शुल्कवृद्धि) अधिक कर लगाना (वलात्) वलात् (च) और (पण्यग्रहणम्) द्रव्य ग्रहण करना ये (देशान्तरभाण्डानाम्) विदेश से माल आने में (अप्रवेशे) रुकावट का (हेतुः) कारण है । आवश्यकता से अधिक टैक्स-कर लगाना और बलात् द्रव्य ग्रहण करने से उस राजा के राज्य में विदेश से माल आना बन्द हो जाता हैं । विशेषार्थ :- जिस देश में दूसरे देश की चीजों पर अधिक टैक्स लगाया जाता हो, तथा जहाँ से राजकर्मचारीगण बलात् कम मूल्य देकर वस्तुएँ छीन लें उस देश में अन्य देश से माल-असबाब आना बन्द हो जाता है In || शुक्र विद्वान ने भी लिखा है : यत्र गृहणन्ति शुल्कानि पुरुषा भूपयोजिता । अर्थहानिं च कुर्वन्ति तत्र नायाति विक्रयाम् ।। ।। अर्थ :- जहाँ पर राजकर्मचारी वस्तुओं पर अधिक टैक्स-चुंगी बढ़ाते हों, और व्यापारियों का जबरन धन का नाश करते हों उस देश में व्यापारी लोग अपना माल बेचना बन्द कर देते हैं ।।1 204
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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