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नीति वाक्यामृतम्
समुद्र की प्यास बुझाने को इससे अधिक जल उपलब्ध नहीं हो सकता । इसी प्रकार राजा भी यदि प्रचुर धन राशि की लोलुपता वश प्रजा को छठवें भाग से अधिक कर टैक्स लेगा तो फिर जनता के पास धन कहाँ से रहेगा ? राष्ट्र की सम्पत्ति किस प्रकार वृद्धिंगत होगी ? ऐसी दशा में राष्ट्र राज्य में अमन-चैन भी किस प्रकार रह सकता है ?
टैक्स की अधिकता से सम्पूर्ण राज्य व राष्ट्र दारिद्र पीडित होकर नष्ट हो जायेगा । अतएव राजा को न्यायनीति पूर्वक राज्योचित नियमानुसार ही कर (टैक्स) लेना चाहिए । इस प्रकार न्यायोचित कर देकर प्रजा सन्तुष्ट रहती है, राज्य-राष्ट्र भी सम्पन्न होता है। सतत् वृद्धि को प्राप्त होता रहता है। शुक्र विद्वान ने भी लिखा हैषड भागाभ्यधिको दण्डो यस्य राज्ञः प्रतुष्टये । तस्य राष्ट्र क्षयं याति राज्यं च तदनन्तरम् ॥1॥
अर्थ :- जो नृप प्रजा की आय के छठवं भाग से अधिक धन राशि कर-टैक्स में लेता है या लेने की लालसा करता है उसका देश नष्ट हो जाता है और क्रमशः पुनः राज्य भी नाश को प्राप्त हो जाता है । निःसन्देह देश व राज्य का उत्थान - पतन राजा की सन्तुष्टि व लोलुपता के आश्रय रहता है।
सारांश यह है कि राजा को राजनीति का पूर्ण ज्ञाता होना चाहिए । भोग-विलास और व्यसनों से अच्छूता रहना चाहिए । जो यथोचित्त कर टैक्स वसूल कर सन्तुष्ट रहता है वह महीपाल अपने राज्य, राष्ट्र के साथ सुखी रहता है ।
गाय-भैंस की रक्षा न करने से हानि :
स्वयं जीवधनमपश्यतो महती हानिर्मनस्तापश्च क्षुत्पिपासाऽप्रतिकारात् पापं च 11 m
अन्वयार्थ :- (स्वयम् ) अपने आप ( जीवधनम् ) जीविकोपार्जित धन- गाय-भैंस अपश्यतः) नहीं देखने पर (मनस्ताप :) मन में पश्चाताप (क्षुत्पिपासा) क्षुधा तृषा, (च) और (अप्रतिकारात् ) प्रतिकार न करने से (पाप) पाप (इति) ये (महती ) बहुत बड़ी (हानि: ) क्षति [ भवति ] होती है ।
अर्थ :- जीवनोपयोगी साधनों की उपेक्षा करने वाले व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक आदि अनेक प्रकार के संक्लेश उत्पन्न होते हैं ।
विशेषार्थ :भैंस, गाय, खेत आदि जीवन के साधन हैं। उनकी देख-रेख करना आवश्यक है । जो व्यक्ति स्वार्थ व अज्ञान वश इनकी देख-भाल नहीं करता उसे महान क्षति का शिकार होना पड़ता है । आर्थिक हानि प्रमुख है । इसकी क्षति से अन्य हानियाँ भी उठानी स्वाभाविक है। यदि वे मृत्यु को प्राप्त हुए तो संक्लेश- मानसिक पीडा होती हैं । उन्हें भूखे-प्यासे रखने से महान् पाप बन्ध होता है ।
राजनैतिक क्षेत्र में गाय-भैंस आदि जीवन निर्वाह में उपयोगी सम्पत्ति की रक्षा न करने वाले नृप को बहुत आर्थिक क्षति होती है। क्योंकि गो धन राष्ट्र व देश महती सम्पत्ति है । जिस देश व राष्ट्र में गो-धन रक्षित नहीं होता तो उसकी राज्य समुन्नति हो ही नहीं सकती क्योंकि घृत, दुग्ध आदि पौष्टिक पदार्थ गोधन से ही उपलब्ध
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