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________________ नीति वाक्यामृतम् सिद्धान्त ग्रन्थ-धर्मशास्त्र एवं स्मृत्ति-आचार ग्रन्थ वेदों का ही समर्थन करते हैं अत: उन्हीं के समान प्रमाण विशेषार्थ :- चारों अनुयोगों के समर्थक व अनुकूल विषय प्रतिपादक अन्य सिद्धान्त व आचार-विचार सम्बन्धी ग्रन्थ भी प्रमाणभूत हैं । क्योंकि वे भी उन्हीं (चारों अनुयोगों के) अंशभूत हैं । यथा सागर के जल को लोटे में भरने पर सागर नहीं है और असागर भी नहीं कहा जा सकता, फिर क्या है ? सागर का अंश मात्र है । इसी प्रकार यहाँ भी समझना चाहिए । आचार्य श्री सोमदेव स्वामी ने अपनी उदारचित्तवृत्ति का परिचय यशस्तिलक चम्पू में निम्न प्रकार चित्रित किया है : सर्व एव हि जैनानां प्रमाण लौकिकी विधिः । यत्र सम्यक्तत्व हानिन यत्र न व्रतदूषणम् ।। अर्थ :- आर्हद्दर्शन-जिनदर्शन के मानने वालों ने उन समस्त लौकिक आचार-विचारों को तथा वेद और स्मृति ग्रन्थों को उतने अंशों में प्रमाण स्वीकृत किया है, जितने अंश में उनके सम्यग्दर्शन और सम्यक चारित्र में क्षति नहीं होती । अर्थात् उनमें दोष उत्पन्न नहीं होता है ।।4।। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के समान कर्त्तव्य का निर्देश : अध्ययनं यजनं दानं च विप्रक्षत्रियवैश्यानां समानो धर्मः ।।5।। अन्वयार्थ :- (अध्ययन) शास्त्र पढ़ना (यजनम्) देवपूजा (च) और (दानम्) सत्पात्रदान ये (विप्रक्षत्रिय वैश्यानाम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के समान कर्त्तव्य हैं । विशेषार्थ :- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन वर्ण उत्तम कहे हैं । इन्हें दीक्षा-जिनलिंग धारण करने का एवं गृहस्थावस्था में षट्कर्म पालन का समान अधिकार जिनागम में प्रदत्त है । नीतिकार कामन्दक ने भी कहा है कि : इज्याध्ययन दानानि यथाशास्त्रं सनातनः । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यानां सामान्यो धर्म उच्यते ।। कामन्दकीय नीति सार श्लो. 18 पृ. 18 अर्थ :- पूजा करना, शास्त्रों का अध्ययन करना और दान प्रदान करना ये ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों के ! समान धर्म हैं । हारीत विद्वान ने भी इसी का समर्थन किया है : वेदाभ्यासस्तथा यज्ञाः स्वशक्त्या दानमेव च । विप्र क्षत्रिय वैश्यानां धर्मः साधारणः स्मृतः ।।1।। 176
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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