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नीति वाक्यामृतम्
कल्य :- धार्मिक आचार-विचार, किया-काण्डों-गर्भाधागटि संस्कारों के निरूपक शास्त्र को कल्प कहते हैं । गर्भादि-संस्कार निम्न प्रकार हैं :
ताश्च कियास्त्रिधाम्नाता श्रावकाध्यायसंग्रहे । सद्द्दष्टिभिरनुष्ठे या महोदकाः शुभावहाः ॥1॥ गर्भान्वय कियाश्चैव तथा दीक्षान्वय कियाः । कर्मन्वय क्रियाश्चेति तास्त्रिधैवं बुधैर्मताः ॥2॥ आधानाधास्त्रिपञ्चाशत्ज्ञेयाः गर्भान्वयक्रियाः । चत्वारिंशदथाष्टौ च स्मृता दीक्षान्वयक्रियाः ॥3॥ कन्वयक्रियाश्चैव सप्त तज्छौः समुच्चिताः । तासां यथाक मं नामनिर्देशोऽयमनूद्यते ॥4॥
आदिपुराणे भगजिनसेनाचार्यः पर्व 38 श्लोक 50 से 53 ।
अर्थ :- श्रावकाचार में क्रियाएँ तीन प्रकार की कहीं हैं - 1, गर्भान्वय क्रिया, 2. दीक्षान्वय और 3. कर्त्तन्वय क्रिया । उनमें गर्भाधानादि के भेद से 53 क्रियाएँ हैं । दीक्षान्वय क्रियाएँ 48 प्रकार की है । कन्वय क्रियाएँ सात प्रकार की हैं । उनके नाम अनुक्रम से कहते हैं ! नामादि आदि पुराण से ज्ञात करें ।
3. व्याकरण :- जिसके माध्यम से भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना ज्ञात हो उसे व्याकरण शास्त्र कहते हैं।
4. निरुक्ति :- यौगिक, रुढि एवं योगरुढ़ि शब्दों के प्रत्यय, प्रकृति आदि का विश्लेषण करके प्राकरणिक द्रव्य पर्यायात्मक या अनेक धर्मात्मक पदार्थ के निरुपण करने वाले शास्त्र को निरुक्ति कहते हैं ।
5. छन्द :- पद्यों वर्णवत्त और मात्रवत्त छन्दों के लक्ष्य और लक्षण के निर्देश करने वाले शास्त्र को छन्द शास्त्र कहते हैं ।
6. ज्योतिष :- जिसमें ग्रहों की गति, और उससे होने वाले विश्व पर शुभ-अशुभ फलों का वर्णन हो और भी प्रत्येक कार्य के सम्पादन के योग्य शुभ समय को बताने वाली विद्या को ज्योतिर्विद्या कहते हैं । इस प्रकार ये 6 वेदाङ्ग हैं ।
इतिहास, पुराण, मीमांसा (विभिन्न और मौलिक, सिद्धान्त, बोधक, वाक्यों पर शास्त्र विरुद्ध युक्तियों द्वारा विचार करने पर समीकरण करने वाली विद्या) न्याय (प्रमाण और नयों का विवेचन करने वाला शास्त्र) और धर्म शास्त्र (अहिंसा धर्म के पोषक तथा व्यावहारिक रूप का विवेचन करने वाला उपासकाध्ययन शास्त्र) इन 14 विद्या स्थानों को प्रयी विद्या कहते हैं । राजाओं को इनका ज्ञान होना ही चाहिए ।।1।।
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