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नीतिकार कहते हैं :
नीति वाक्यामृतम्
अगुरु पर्वतमध्ये निम्बबीजं प्रतिष्ठितम् 1 सिक्को घटसहस्रेण निम्बः किं मधुरायते ॥13 ॥ सं श्लो. सं. पृ. 406.
अर्थ
अगुरु-नन्दन के शैल के मध्य में को बोने पर और हजारों मधुर घटों से सिंचन करने पर भी क्या उसका फल मधुर होगा ? कभी नहीं । उसी प्रकार दुर्जन के सहवास से कभी भी सुख-शान्ति नहीं मिल सकती । और भी कहते हैं :
दुर्जनः परिहर्त्तव्यो विद्यया भूषितोऽपि सन् । मणिनालंकृतः सर्पः किमसौ न भयङ्करः ॥14 ॥
अर्थ :- विद्या से अलंकृत भी दुर्जन को त्याग देना चाहिए क्या मणि से युक्त सर्प विषधर नहीं होता ? होता ही है । अत: सत्संगति ही करने योग्य है ।
स्त्रियों में विश्वास करने से हानि :
मरणान्तः स्त्रीषु विश्वासः ||47||
अन्वयार्थ :- ( स्त्रीषु) स्त्रियों में (विश्वास) विश्वास करना ( मरणान्तः) मृत्यु के लिए अन्त में सिद्ध होता
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विद्वान विष्णु शर्मा लिखता है कि :
नीयमान: खगेन्द्रेण नागः पौण्डरीकोऽब्रवीत् । स्त्रीणां गुह्यमाख्याति तदन्तं तस्य जीवितम् ॥1॥
अर्थ :- गरुड़ के द्वारा लिए जाने वाले पुण्डरीक नाम के सर्प ने कहा कि जो स्त्रियों में विश्वास करता हैं - अपनी गुप्त बात कहता है, उसकी मृत्यु निश्चित है । अतएव सज्जनों को महिलाओं के प्रति विश्वास्त नहीं रहना चाहिए !
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इति श्री प. पू. प्रातः स्मरणीय विश्ववंद्य चारित्र चक्रवर्ती मुनिकुञ्जर समाधि सम्राट् आचार्य श्री आदिसागर जी अंकलीकर के पट्टशिष्य श्री प. पू. महातपस्वी दिगम्बराचार्य, तीर्थभक्त शिरोमणि आ. श्री महावीर कीर्ति जी महाराज संघस्था, श्री प. पू. कालिकालसर्वज्ञ आचार्य श्री विमल सागर जी की शिष्या ज्ञानचिन्तामणि प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजयामती द्वारा विजयोदय टीका हिन्दी भाषा में प. पू. उग्रतपस्वी सम्राट् सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज के चरण सान्निध्य में "आन्वीक्षिकी सम्मुद्देश" छठवां समाप्त हुआ ।। 23-8-94.
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