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________________ नीति वाक्यामृतम् N राज्यपद का परिणाम : बन्धनान्तो नियोगः ||45॥ अन्वयार्थ :- (नियोगः) राज्याधिकार (अन्ते) अन्त में (बन्धनम्) बन्धन (ददाति) देता है । विशेषार्थ :- "राजेश्वरी सो नरकेश्वरी" कहावत प्रसिद्ध है । चक्रवर्ती भी पटखण्ड का अधिपति होता है, यदि राज्य करता मरे तो नियम से नरक ही में पड़ता है । विद्वान गुरु ने भी लिखा है कि : ___ न जन्म मृत्युना वाह्यं नोच्चैस्तु पतनं बिना । न नियोगच्युतो योगो, नाधिकारोऽस्स्यबन्धनः ॥॥ अर्थ :- जन्म के साथ मृत्यु, उन्नति के साथ अवनति, उत्थान के साथ पतन, ध्यान के सह नियोग-विचलितता, और राज्याधिकार के साथ बन्धन का कष्ट अवश्यम्भावी होता है । दुष्टों से होने वाली हानि : विपदन्ता खल मैत्री 1460 अन्वयार्थ :- (खलस्य) दुर्जन की (मैत्री) मित्रता (अन्ता) अन्ततः (विपदा) विपत्ति [भवति] होती है। दुष्टों की संगति अन्त में दुःखदायक होती है । विशेषार्थ :- संगति-सहवास का मानव जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है । सज्जन या दुर्जन की संगति वैसा ही अच्छा-बुरा फल देती है । कहा है : संगति कीजै साधु की हरै और की व्याधि । ओछो संगति नीच की आठों पहर उपाधि || सत्पुरुषों की संगति करने से अपनी पीड़ा तो दूर होती ही है अन्य का भी दुःख निवारण होता है । खोटेनीच माक्ति की संगति करने से स्व और पर को हर क्षण कष्ट दायक होता है । दुर्जनों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए । श्री वल्लभदेव ने भी कहा है : असत्संगात् पराभूतिं याति पूज्योऽपि मानवः । लौह संगाद्यतो वहिस्ताड्यते सुघनैपर्ने: ॥1॥ अर्थ :- नीच पुरुषों के साथ सहवास करने से पूज्य पुरुष भी तिरस्कार के पात्र हो जाते हैं । लोहे की संगति करने से निर्दोष अग्नि को भयंकर घनों की मार सहनी पड़ती है । हथौड़े की मार से कुटती 171
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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