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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ :- नीतिज्ञ पुरुष को अपने वंश की रक्षा को अपना शरीर का परित्याग करना उचित है । इसी प्रकार ग्राम की रक्षा को वंश, देश की परिवृद्धि के लिए ग्राम, और अपनी रक्षा के लिए पृथ्वी का त्याग करना योग्य है।
जो राजा पापियों का निग्रह करता है, उनकी मानहानि, अंगाङ्ग-छेदन-भेदन आदि का दण्ड देता है वह उत्कृष्ट धर्माधिकारी होता है । क्यों ? उन अपराधियों के अपराध का निर्मूलन करने में उसे पाप नहीं लगता, अपितु पुण्य होता है ॥2॥
राजा का कर्त्तव्य पालन करते हुए कदाच् पाप क्रियाएँ होती हैं । परन्तु उसके शुभ उद्देश्य और अभिप्रायानुसार वे पाप कोटि में न आकर पुण्य के ही कारण होते हैं । राजा भी प्रशंसनीय, यशस्वी, न्याय परायण माना जाता है ।३॥ दुष्ट निग्रह न करने से हानि :
अन्यथा पुनर्नरकाय राज्यम् ॥14॥ अन्वयार्थ :-- (अन्यथा) न्याय न करे तो (पुन:) पुनः वह (राज्यम्) राज्य (नरकाय) नरक ले जाता है।
जो राजा दुष्टों का निग्रह न करे उन्हें पोषण का अवसर दे तो उसका राज्य नरक में ले जाने का प्रशस्त मार्ग है।
विशेषार्थ :- जो राजा सत्ताधिकारी होकर अपराधियों को दण्ड विधान न करे । शिष्टों-सदाचारियों का भरणपोषण-रक्षण न करे तो वह नरकगामी होता है क्योंकि कर्त्तव्य च्यत है । कायर है । हारीत ने भी इस विषय में निम्न प्रकार कहां है :
चौरादिभिर्जनो यस्य शैथिल्येन प्रपीड्यते । स्वयं तु नरकं याति स राजा नात्र संशयः ॥1॥
अर्थ :- जिस राजा के राज्य में सैनिक शक्ति शिथिल हो, चोरादि का आतंक प्रसरित हो, पीड़ा से प्रजा दु:खी हो, आतताइयों के हमलों से जनता सताई जा रही हो वह राजा नि:सन्देह नरक में प्रवेश करता है । अभिप्राय यह है कि राजा में निम्न गुण होने चाहिए :
शासक में ये जन्म से होते अतिशय तीन । छानबीन, विद्याविपुल, निर्णयशक्ति प्रवीन ॥3॥
कुरल.प.छे.39 अर्थ :- शासक को मुख्य तीन गुणों से युक्त होना चाहिए-1. प्रजा की सूक्ष्मता से गुण-दोषों, शिष्ट-दुष्टों की सम्यक् परख करना, 2. विद्या-विवेक चातुर्य, अर्थात् स्वयं शुभाशुभ का निर्णय करने की दक्षता और 3. नीति
नैपुण्य । इन गुणों से युक्त राजा फलता-फूलता है । अन्यथा नरक की हवा खाता है ।"जो सतावे और को वह M-सुख कभी पाता नहीं" प्रजा को सताने वाला नरक के सिवाय अन्यत्र कहाँ जावे ? कहीं नहीं ।
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