________________
नीति वाक्यामृतम्
पराक्षे यो भवेदर्थः सज्ञेयोऽत्र समाधिना ।
प्रत्यक्षश्चेन्द्रियैः सर्वं निजगोचरमागतः ॥1॥ अर्थ :- हो गोद भार्थ हैं राधा राम, रावण, मेरु आदि जो इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हो सकते । ये ध्यान द्वारा जाने जा सकते हैं । एवं जो समीपवर्ती प्रत्यक्ष पदार्थ हैं वे इन्द्रियों से अवगत हो जाते हैं ।
प्रत्यक्ष व परोक्ष पदार्थों में ज्ञानराशि शक्ति से निर्गुण और सगुण का निश्चय करना यह सम्प्रत्यय सुख का कारण है 1115॥ अब विषय के स्वरूप का निर्णय करते हैं :
___ इन्द्रियमनस्तर्पणो भावो विषयः ॥16॥ अन्वयार्थ :- (इन्द्रियमनस्तर्पणो) इन्द्रिय और मन सन्तुष्ट करने वाले (भावाः) पदार्थ (विषयाः) विषय (भवन्ति) होते हैं 1
जो पदार्थ जिस इन्द्रिय व मन को प्रसन्न करे वह उसका विषय है ।
विशेषार्थ :- इन्द्रियों और मन के विषयों का निर्णय करना दुर्लभ है । क्योंकि प्रत्येक प्राणी-मनुष्य की रुचि भिन्न-भिन्न होती हैं । उनकी इन्द्रियाँ भी उनके अभिप्रायानुसार उन-उन ही विषयों को श्रेष्ठ मानता है । अर्थात् प्रत्येक मानव की इन्द्रियाँ और मन अपनी-अपनी स्वेच्छानुसार ही भिन्न-भिन्न विषय को सुख रूप स्वीकार करते. हैं और सन्तुष्ट होते हैं । शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
मनसश्चेन्द्रियाणां च सन्तोषो येन जायते ।
स भावो विषयः प्रोक्तः प्राणिनां सौख्यदायकः ॥1॥ अर्थ :- जिस पदार्थ से मन और इन्द्रियों को सन्तोष होता है वह पदार्थ विषय कहा जाता है । जो कि प्राणियों को सुख प्रदान करता है ।
भोक्ता की रुचि के अनुसार प्राप्त पदार्थ उसका विषय होता है । क्योंकि मन इन्द्रियाँ अपनी-अपनी इष्ट वस्तु को चाहती हैं उनमें ही प्रीति करती हैं । प्रीति ही सुख है । अब दुःख के लक्षण का निर्देश करते हैं :
दुःखमप्रीतिः 17॥ अन्वयार्थ :- (अप्रीतिः) अरुचि (दुःखम्) दुःख है । विषयों में अरुचि ही दुःख है ।
155