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नीति वाक्यामृतम् - -
अन्वयार्थ :- (यतः) जिससे मनुष्य (स्मृतिः) भूतकालीन घटना की याद (प्रत्यवमर्षणम्) पूर्वापर सम्बन्ध विचार (ऊहापोहनम्) तर्क-वितर्क (शिक्षा) सीख (आलाप) वार्तालाप (क्रिया) कार्य (ग्रहणम्) प्राप्त करता है (च) और भी विवेचन (भवति) होता है (तत्) वह (मनः) मन है ।
जिसके निमित्त से मनुष्य या प्राणी, हिताहित प्राप्ति और परिहार का विचार करता है, भूत की स्मृति करता है, ऊहा-पोह आदि तर्कणा करता है उसे मन कहते हैं ।
विशेषार्थ :- मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है । चिन्ताओं का आधार मन है ! जिसकी मानसिक शक्ति जितनी तीव्र-उत्कट होती है वह उतना ही विचारज्ञ, कार्यकुशल, दक्ष समझा जाता है । इसके कार्य हैं :
स्मृति :- "स्मरण स्मृतिः" पूर्व कृत, विचारित, संकल्पित कार्यों की याद करना स्मृति है ।
व्याप्ति :- साधन के होने पर साध्य का होना और साध्य की गैरमोजूदगी में साधन का नहीं होना व्याप्ति ! है । यथा धूम के होने पर अग्नि का होना और अग्नि रूप साध्य के अभाव में धूम रूप साधन का नहीं होना . यह व्याप्ति ज्ञान है ।।
ऊहा :- सन्देह युक्त पदार्थ का विचार करना ।
शिक्षा :- उपदेशादि गृहण करना । अपोहनम् :- अपाय कारक वस्तु से बचने का प्रयत्न करना ।
इस प्रकार उपर्युक्त कार्यों की क्षमता जिस शक्ति द्वारा मानव को प्राप्त हो वह मन कहलाता है । बोल चाल में मन को हृदय व चित्त भी कहते है । जहाँ चित्त स्थिर होता है, जब स्थिर होता है वहाँ, वह मन की एकाग्रता कही जाती है। मन ही बन्ध और मन ही मोक्ष है । क्योंकि बन्धन और मुक्ति का यही कारण है । कहा भी है "मनो रेव कारणं बन्ध मोक्षयोः" मन ही बन्ध का और मोक्ष का हेतू है । किसी के साथ की गई चर्चा-वार्ता को स्मरण रखना, समयोचित उसका उपयोग करना मन के आश्रित है ।। एक विद्वान "गुरु" ने भी मन का विश्लेषण करते हुए कहा है :
ऊहापोहो तथा चिन्ता परालापावधारणं ।
यतः संजायते पुंसां तन्मनः परिकीर्तितम् ॥ अर्थ :- जिसके द्वारा मनुष्यों को ऊह-संदिग्ध पदार्थ का विचार, अपोह-निश्चय, चिन्ता-व्याप्ति का ज्ञान, और दूसरों के उपदेश को अवधारण करना, आदि उत्पन्न होते हैं वह मन कहलाता है ।
मन का कार्य कर्त्तव्य-अकर्तव्य, योग्य-अयोग्य, भक्ष्य-अभक्ष्य, हेय-उपादेय आदि का ज्ञान करना मन का। काय है ।
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