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नीति वाक्यामृतम्
है वह उसी प्रकार के शुभ-अशुभ पुण्य-पाप रूप कार्यों को करने में अभ्यस्त हो जाता है । पुनः उनमें परिवर्तन करना संभव नहीं होता । अर्थात् प्रारम्भिक प्रवृत्तियाँ अमिट सी हो जाती हैं । अत: माता-पिता गुरु, शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों में समीचीन शुद्ध पवित्र धार्मिक आचरणों को अंकित करें । वर्तमान के पाश्चात्य संस्कृति के अशोभन, पापजन्य संस्कारों से उनका रक्षण करें 174॥ दुराग्रही, हठी राजा का होना योग्य नहीं :
अन्थ इव वरं पर प्रणेयो राजा न ज्ञानलव दुर्विदग्धः ।।75॥
अन्वयार्थ :- (अन्धः) जन्मान्ध-नेत्रहीन (इव) समान मूर्ख (परप्रणेयो) मूर्ख-मंत्री आदि द्वारा राज्य शासन वाहक (राजा) नपति (वरम्) श्रेष्ठ है, परन्तु (ज्ञानलव) अल्प राजनीति ज्ञाता (दुर्विदग्ध) अभिमानी हठी, (राजा) भूपति (न) अच्छा नहीं ।
जन्मान्ध राजा भी मंत्री आदि की सहायता से नीतिपूर्वक प्रजापालन करता है तो अल्पज्ञ दुराग्रही नृप से कहीं श्रेष्ठ है, अच्छा है।
विशेषार्थ :- सुयोग्य मन्त्री और पुरोहितादि की कुशल राह के साथ प्रजा के सुख-दुख को दृष्टि में रखकर जो भूपति जन्मान्ध होकर भी सुयोग्य न्यायपूर्वक शासन चलाता है श्रेष्ट है, उस चक्षुष्मान राजा की अपेक्षा जो राजनीति का अल्पज्ञान कर अहंकार वश दुराग्रह-हअग्रह वश अन्याय करता है प्रजा को पीड़ा देता है । अनेक प्रकार से
ता है । क्योंकि चक्षविहीन होने पर भी वह सन्धि, विग्रह, यान, आसनादि षाडगुण्य में प्रेरित हो राज्य की रक्षा में दत्तचित्त है । परन्तु दुराग्रही राज्य की क्षति ही करता है वह कुशल नहीं । गुरु विद्वान कहता है :
मंत्रिभिर्मत्र कुशलैरन्धः संचार्य ते नृपः ।।
कुमार्गेण न स याति स्वल्पज्ञानस्तु गच्छति ॥1 ।। अर्थ :- मूर्ख राजा कुशल मन्त्रियों द्वारा राजनैतिक कर्तव्यों का पालन-सन्धि, विग्रहादि षाड्गुण्य में प्रेरित कर दिया जा सकता है, वह कुमार्ग में प्रवृत्त नहीं होता । प्रजा का पालन सही प्रकार करता है, परन्तु अल्पज्ञान से युक्त राजा अन्याय पथ पर आरूढ़ हो जाता है |
अभिप्राय यह है कि राजा को कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए । जो नृप अपने योग्य-कुशल मन्त्रियों-आमात्यों के साथ विचार-विमर्श कर राजकीय कर्तव्यों में प्रवृत्त होता है वह प्रजा सहित सुख, शान्ति का अनुभव करता है ।। मूर्ख-दुराग्रही राजा का वर्णन :
नीली रक्ते वस्त्र इव को नाम दुर्विदग्धे राज्ञि रागान्तरमाधत्ते ।।76 ॥
अन्वयार्थ :- (नीलीरक्ते) नील रंग में रंगे (वस्त्रम्) वस्त्र के (इव) समान (को नाम) कौन पुरुष (दुविदग्धे) । दुर्बुद्धि-दुराग्रही (राज्ञि) राजा में (रागान्तरम्) दूसरा रंग या अन्य पृवृत्ति को (आधत्ते) धारण करा सकता है ?
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