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________________ नीति वाक्यामृतम् द्रव्यं हि क्रियां विनयति नाद्रव्यम् ||44 ॥ अन्वयार्थ :- (द्रव्यम्) योग्य पुरुष (हि) निश्चय से (क्रियां) पदप्राप्ति के फल को (विनयति) प्राप्त करता है ( न अद्रव्यम्) अयोग्य पुरुष नहीं । योग्य गुणों से मण्डित - योग्य पुरुष राज्यपद को प्राप्त करता है, निर्गुण मूर्ख नहीं । विशेषार्थ जिस प्रकार उत्तम किस्म का पाषाण शाण पर रखे जाने से संस्कारित होते हैं साधारण नहीं, उसी प्रकार गुणवान और कुलीन पुरुष ही राज्य आदि उत्तम पद के योग्य है, मूर्ख उस पद को नहीं पा सकता | 144 ॥ : भागुरि विद्वान ने लिखा है कि : गुणायैः पुरुषैः कृत्यं भूपतीनां प्रसिद्धयति । महत्तरमपि प्रायो निर्गुणैरपि नो लघु ।।1 ॥ अर्थ :- प्रायः गुणज्ञों द्वारा ही राजाओं के द्वारा राजाओं के महान् कार्य सफल होते हैं, परन्तु मूर्खो से लघु कार्य भी सिद्ध नहीं होता 1 बुद्धि के गुण और उनके लक्षणों का कथन शुश्रूषा श्रवण- ग्रहण - धारणाविज्ञानोहापोह तत्वाभिनिवेशा बुद्धिगुणाः | 145 | अर्थ : अन्वयार्थ :- ( शुश्रूषा) सेवा, (श्रवण) सुनने की योग्यता ( ग्रहणा ) धारणाशक्ति ( धारणा ) स्मरण शक्ति (विज्ञान) विशेषज्ञान ( उहापोह ) तर्क (तत्व) तत्वज्ञान (अभिनिवेश) उक्तविज्ञान (बुद्धिगुणाः) बुद्धि के गुण | बुद्धि का फल विचार तर्कणा है । श्रोतुमिच्छा शुश्रुषा 1146 ॥ सुनने की इच्छा शुश्रुषा कहलाती है । श्रवणमाकर्णनम् 1147 ।। अर्थ :- श्रवण शक्ति बराबर रहना अर्थात् सुनने की योग्यता होना । ग्रहणं शास्त्रार्थोपादानम् 1148 || अर्थ :- शास्त्र - आगम के अर्थ विषय को ग्रहण करना ग्रहण करते हैं । धारणभविस्मरणम् 1149 ॥ अर्थ :- शास्त्रादि के अर्थ को ग्रहण कर अधिक समय तक विस्मृत नहीं होना धारणा है । मोहसन्देह विपर्यासव्युदासेन ज्ञानं विज्ञानम् 1150 || अर्थ :- अज्ञान, संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय रहित ज्ञान को विशिष्ट सम्यग्ज्ञान कहा जाता है । 125
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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