SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिवाक्यामृतम् अयोग्य पुरुष राज्याधिकारी हो तो क्या हानि होगी ? : यतो द्रव्याद्रव्य प्रकृतिरपि कश्चित् पुरुषः सङ्कीर्णगजवत् ॥43 ॥ अन्वयार्थ :- ( यतः ) क्योंकि ( द्रव्यप्रकृतिः) राज्ययोग्य गुणों से युक्त होने (अपि) पर भी ( यदा) जब ( अद्रव्य प्रकृतिः) अयोग-दुराचारी, व्यसनी होने पर (अपि) भी (कश्चित् ) कोई (पुरुषः) पुरुष (सङ्कीर्ण:) पागल (मजवत्) हस्ति समान (भवति) होता है । योग्य भूपति - राजनीतिनिपुण होने पर भी यदि विषयलम्पटी, दुर्व्यसनी होता है तो मूर्खता, अनाचार, अत्याचार के कारण उन्मत्त गज के समान प्रजा को कष्टकारक, भय दायक होता है । विशेषार्थ :- जिस प्रकार सुन्दर, योग्य आज्ञाकारी भी इभ (हाथी) मदोन्मत्त हो जाता है तो लोकों को कष्टदायक, पीड़ाकारक और भयंकर भय दायक हो जाता है । उसी प्रकार प्रजावत्सल, नीतिनिपुण, सुभट और कर्मठ भी महीपति यदि सदाचार भ्रष्ट हो व्यसनों में पड़ जाय, विषय लम्पटी हो जाय तो वह भी प्रजा को पीड़ादायक, कष्टकारक और भयोत्पादक हो जाता है। राज्यपद के योग्य नहीं रहता । वह स्वयं कायर हो राजसत्ता को खतरे में डाल देगा और स्वयं भी राज्य भ्रष्ट हो जायेगा । वल्लभदेव ने भी इसी प्रकार का अभिमत निरूपित किया है : शिष्टात्मजो विदग्धोऽपि द्रव्याद्रव्य स्वभावकः । न स्याद्राग्यपदार्हो ऽसौ गजो मिश्रगुणो यथा ॥ ॥ ॥ अर्थ :- राजपुत्र शिष्ट और विद्वान होने पर भी यदि द्रव्य - राज्यपद के योग्य गुण से एवं अद्रव्य-मूर्ख, अनाचारी, 'कायरता आदि दोष हो गया हो तो वह मिश्र पागल हाथी के समान राज्य पद के योग्य नहीं रहता है । कारण कि प्रजा के लिए भयंकर हो जाता है । गुरु विद्वान ने भी कहा है : यः स्यात् सर्वगुणोपेतो राजद्रव्यं तदुच्यते । सर्वकृत्येषु भूपानां तदहं कृत्य साधनम् ।।1 ॥ अर्थ :- जो मनुष्य समस्त शासकीय गुणों से सहित है उसे राजद्रव्य कहते हैं। उसमें राजा बनने की योग्यता है । राजाओं में समस्त गुण होने पर भी सदाचार आदि का होना भी अनिवार्य है तभी वह राजा होने योग्य होता है । राज का संचालक योग्य, स्वस्थ होने पर ही सफलता प्राप्त कर सकता है। जो जिस कला में निष्णात होता है वही उस कला से प्राप्त सुखसम्पदा का भोग करने में समर्थ होता है। अतः राज्य सम्पदा के उपभोगेच्छु को राज्य संचालन में नैपुण्य प्राप्त करना अनिवार्य है । गुणवान् पुरुष का वर्णन करते हैं : 124
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy