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नीतिवाक्यामृतम्
हैं। इसी प्रकार शारीरिक बल से पुष्ट नरपात नीति विहीन शास्त्र ज्ञान शून्य होने से सामान्य आततायिओं द्वारा मार दिया जाता है या राज्यभ्रष्ट कर दिया जाता है । विजय वैजयन्ति उसका कण्ठहार नहीं बनती । प्रजा भी उसके तीक्ष्ण-कठोर दण्डों से त्रस्त हो विरुद्ध हो जाती है और उसके मरण में सहायक बन बैठती है । अन्याय का पक्ष कौन बुद्धिमान लेगा ? कोई नहीं । अन्याय करने पर नीतिज्ञ भाई को भी तिरस्कृत कर विभीषण चला गया । भाई ही शत्रु बन गया । शुक्र ने भी कहा है :
पौरुषान्मृगनाथस्तु हरिः स प्रोच्यते जनै: शास्त्रबुद्धि विहीनस्तु यतो नाशं स गच्छति ॥1 ॥
अर्थ :केवल आक्रमण कर्ता होने से मृगों का अधिपति केशरिसिंह 'हरि' नाम से पुकारा जाता है वह पशुओं का घात करता है " जो सतावे और को वह सुख कभी पाता नहीं" कहावत है । भला निरपराध पशुघातक मृगराज नाम धराकर कब तक धरा को कलंकित कर सकता और वसुधा भी इस अन्याय पाप को किस प्रकार सहन कर सकती है ? सिंह शिकारियों द्वारा प्राणविहीन कर दिया जाता है । इसी प्रकार धर्म विहीन राजसत्ता से प्रकृति क्रुद्ध हो जाती है और सहज ही उस सत्ता का जड़मूल से विनाश हो जाता है । आज रावण को कौन पूछता है ? अन्यायी राजाओं की अर्चा क्या चर्चा भी कोई सुनना नहीं चाहता है । राज्यसत्ता महान् है उसका सदुपयोग होना चाहिए । रामराज्य को सारा संसार स्मरण करता है सब कुछ अच्छा था। राम की तनिकसी चूक ने "सीता वनोवास से" उन्हें भी कलंक लगा । सीता भी गई (साध्वी हो गई) और राज्य में अपकीर्ति भी सही । अतः राजा को दूरदर्शी होना चाहिए ।
नीतिशास्त्र ज्ञानविहीन की क्षति :
अशस्त्रः शूर इवाशास्त्र: प्रज्ञावानपि भवति विद्विषां वशः । 134 ॥
अन्वयार्थ :- ( अशस्त्र : ) हथियार रहित ( शूरः) शूरवीर पुरुष ( इव) के समान ( अशास्त्रः) राजनीति के शास्त्रों को नहीं पढ़ा (प्रजावान) कुशल बुद्धि (अपि) भी (विद्विषाम्) शत्रुओं के ( वश:) वशी (भवति) हो जाता है ।
पुस्तकीय ज्ञान के साथ प्रज्ञा और अभ्यास कार्यकारी होता है ।
विशेषार्थ :- नीति शास्त्र का ज्ञान प्रत्येक मानव को होना चाहिए। मात्र शस्त्रों का प्रयोग सफल नहीं होता । विद्वान गुरु का कथन है :
हन्यते
नीतिशास्त्रविहीनो यः प्रज्ञावानपि परै: शस्त्रविहीनस्तु चौराद्यैरपि वीर्यवान् ॥1॥
1
अर्थ :- जिस प्रकार वीर्यवान बलवान मनुष्य भी शस्त्रों- हथियारों से विहीन होने पर चोरादि के द्वारा प्राणरहित कर दिया जाता है । उसी प्रकार प्रज्ञावान, तीक्ष्णबुद्धि भी नीतिशास्त्र से अनभिज्ञ हो तो शत्रुओं द्वारा पराजित कर दिया जाता है । अतएव मानव मात्र को नीतिशास्त्रों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए । न्याय या नीतिवान का महत्त्व बताते हैं :
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